'पसन्द अपनी अपनी' (स्वतंत्रता दिवस विशेष)
जब चिरागों को उजाले
खुद बुझाने आ गये।
जख्म भरने वाले खुद
जब जख्म देने आ गये।
माटी हल्दी घाटी की भी
स्याह तब होने लगी।
वकील बन आतंकियों के
हुक्मरां जब आ गये।
दरबार को दरबारि ही
जब बंद करने आ गये।
जो सूट पहने बूट वो
सबको दिखाने आ गये।
तो कैसे मानें देश के
दिन अच्छे अब आने लगे।
छुरी बगल में अल्ला मुख में
' अरि 'जो करने आ गये।
'ललित'
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