माँ

माँ

ऐसा गुलाब
जिस की महक अलौकिक है,
दो काँटे भी लगे हैं ।
ऐसा हवामहल
जहाँ न कोई खिड़की है,
न पंखे,एसी,कूलर लगे हैं ।
ऐसा गंगा जल
जिसमें प्रदूषण नहीं है ,
न कोई बाँध बने हैं ।
ऐसी देवी
जिसकी चरण-रज
देवताओं के भी सिर चढ़ी है ।
ऐसा घर - संसार,
ऐसा पावन-प्यार,
और कहीं मिल सकता  नहीं है ।
माँ जैसी त्रिलोकी में
कोई शै नहीं है।

'ललित'

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