मात्रा गिनने के नियम हिंदी छंद के लिए
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हिंंन्दी मेें छंद-बद्ध रचना लिखने के लिये मात्राभार की गणना का ज्ञान आवश्यक है ।
इसके निम्न लिखित नियम हैं :-
(1) ह्रस्व स्वरों की मात्रा १ होती है जिसे लघु कहते
हैं , जैसे - अ, इ, उ, ऋ
(2) दीर्घ स्वरों की मात्रा २ होती है जिसे गुरु कहते
हैं,जैसे-आ, ई, ऊ, ए,ऐ,ओ,औ
(3) व्यंजनों की मात्रा १ होती है , जैसे -
.... क,ख,ग,घ / च,छ,ज,झ,ञ / ट,ठ,ड,ढ,ण / त,थ,द,ध,न /
प,फ,ब,भ,म /
.... य,र,ल,व,श,ष,स,ह
(4) व्यंजन में ह्रस्व इ , उ की मात्रा लगने पर उसका
मात्राभार १ ही रहती है
(5) व्यंजन में दीर्घ स्वर आ,ई,ऊ,ए,ऐ,ओ,औ की मात्रा
लगने पर उसका मात्राभार
२ हो जाता है।
(6) किसी भी वर्ण में अनुनासिक लगने से मात्राभार
में कोई अन्तर नहीं पडता है,
जैसे - रँग=११ , चाँद=२१ , माँ=२ , आँगन=२११,
गाँव=२१
(7) लघु वर्ण के ऊपर अनुस्वार लगने से उसका
मात्राभार २ हो जाता है , जैसे -
.... रंग=२१ , अंक=२१ , कंचन=२११ ,घंटा=२२ , पतंगा=१२२
(8) गुरु वर्ण पर अनुस्वार लगने से उसके मात्राभार में
कोई अन्तर नहीं पडता है,
जैसे - नहीं=१२ , भींच=२१ , छींक=२१ ,
कुछ इन इसे अनुनासिक मानते हैं लेकिन
मात्राभार यही मानते हैं,
(9) संयुक्ताक्षर का मात्राभार १ (लघु) होता है , जजज
- स्वर=११ , प्रभा=१२
.... श्रम=११ , च्यवन=१११
(10) ज में ह्रस्व मात्रा लगने से उसका
मात्राभार १ (लघु) ही रहता है ,
जैसे - प्रिया=१२ , क्रिया=१२ , द्रुम=११ ,च्युत=११,
श्रुति=११
(11) संयुक्ताक्षर में दीर्घ मात्रा लगने से उसका
मात्राभार २ (गुरु) हो जाता है ,
जैसे - भ्राता=२२ , श्याम=२१ ,
स्नेह=२१ ,स्त्री=२ , स्थान=२१ ,
(12) संयुक्ताक्षर से पहले वाले लघु वर्ण का
मात्राभार २ जजJ(गुरु) हो जाता है ,
जैसे - नम्र=२१ , सत्य=२१ , विख्यात=२२१
(13) संयुक्ताक्षर के पहले वाले गुरु वर्ण के मात्राभार में
कोई अन्तर नहीं पडता है,
जैसे - हास्य=२१ , आत्मा=२२ , सौम्या=२२
शाश्वत= , भास्कर=२११.
(14) संयुक्ताक्षर सम्बन्धी नियम (१२) के कुछ नियम
भी हैं , जिसका आधार पारंपरिक उच्चारण है , अशुद्ध उच्चारण नही
जैसे- तुम्हें=१२ , तुम्हारा/तुम्हारी/तुम्हारे=१२२,
जिन्हें=१२, जिन्होंने=१२२,
कुम्हार=१२२, कन्हैया=१२२
(15)उदाहरणों में अधिकांशत
का परवर्ती अक्षर 'ह' होता है
..... किन्तु यह कोई नियम नहीं है जैसे कुल्हाड़ी=122
जबकि कुल्हड़=211
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