सितम्बर 2019 की रचनाएँ
3.9.19
समान/सनाई छंद
मोहन
कितना सुंदर है तू मोहन,कितनी प्यारी मूरत तेरी?
राधा के चंचल नैनों में,दिखती है क्यूँ सूरत तेरी?
मोरपंख जो सिर पर धारा,उसने क्या-क्या पुण्य किए थे?
क्यों उस बाँसुरिया ने तेरे,अधरामृत के घूँट पिए थे?
ललित
समान/सनाई छंद
नंदन-वन
एक बार सपनों में आकर,कान्हा मुरली मधुर बजा दे।
नंदन-वन गोकुल सी प्यारी,स्वप्न नगरिया श्याम सजा दे।
सपनों में भी दर्शन तेरे,मिल जाएँ तो मैं तर जाऊँ।
तेरी मुरली की धुन पर मैं,नाच-नाच कर तुझे नचाऊँ।
ललित
समान/सनाई छंद
सुदामा
कृष्ण तुम्हारे दर्शन करने,इक भक्त द्वार पर है आया।
फटे वस्त्र तन पर लिपटाए,नाम सुदामा है बतलाया।
चंदन तिलक भाल पर उसके,अजब तेज से मुख दमके है।
कृशकाया है लेकिन उसका,रोम-रोम अद्भुत चमके है।
ललित
समान/सनाई छंद
सैल्फी मुर्दे की
देख रहा था बेसुध मुर्दा,ज़िन्दा लोगों की नादानी।
अंतिम सेल्फी खिंचवाने की,उसने भी थी मन में ठानी।
यमदूतों से लेकर आज्ञा,हँसा ज़ोर से वो कुछ ऐसे।
भाग लिए सैल्फी दीवाने,भूत निकल आया हो जैसे।
ललित
दोहा
अँधियारे पथ में गुरू,थामे जिसका हाथ।
कई और को शिष्य वो,तारे अपने साथ।
ललित
समान/सनाई छंद
कोरी चुनरी
कोरी चुनरी दी थी तूने,मैंने भव-रँग में रँग
डाली।
काम-क्रोध-मद-लोभ भरी ये,चुनरी बाहर भीतर काली।
बदरँग चुनरी लेकर कान्हा,आया हूँ मैं तेरे द्वारे।
ऐसे रँग में रँग दे इसको,जो भव-सागर पार उतारे।
ललित
समान/सनाई छंद
झोली
मंदिर की मूरत में बैठा,कान्हा जब तू मुस्काता है।
प्यार भरा इक निर्झर तेरे,नैनों से छलका जाता है।
मन करता है रहूँ देखता,अपलक नैनों से छवि तेरी।
जब तक तेरी दया-दृष्टि से,भरे न कान्हा झोली मेरी।
ललित
11.9.19
त्रिभंगी छंद
बाँका ग्वाला
बाँसुरिया वाले,निपट निराले,बाँके ग्वाले,
ओ प्यारे।
वो मुरली प्यारी,सब दुखहारी,धुन में न्यारी,सुनवा रे।
सुनने को व्याकुल,सारा गोकुल,यमुना- संकुल,है आया ।
मुरली जब बोले,रस यूँ घोले,नैन न खोले,
यह काया।
ललित
त्रिभंगी छंद
टिम-टिम तारे
टिम-टिम-टिम तारे,करें इशारे,मुन्ना प्यारे,
चुप हो जा।
चम-चम-चम प्यारा,चंदा न्यारा,मामा कहता,तू सो जा।
रूई सी गोरी,चंद्र-चकोरी,आयी दौड़ी,
मुन्ना रे।
मैया मुस्काती,लोरी गाती,मुन्ना प्यारे,सुनना रे।
ललित
दोहा
दिल टूटा जुड़ता नहीं,कर लो यत्न हजार।
अपनों का या गैर का,दिल मत तोड़ो यार।
ललित
त्रिभंगी छंद
जीवन-नैया
ये जीवन-नैया,ता-ता-थैया,करती भैया,डोल रही।
तुम हँस लो गा लो,दर्द भगा लो,खुशी मना लो,बोल रही।
गम में मत झूलो,चिंता भूलो,मंजिल छू लो,मन चाही।
ये राह निराली,देखी-भाली,जीवट वाली,ओ राही।
ललित
त्रिभंगी छंद
कान्हा काला
वो कान्हा काला,नँद का लाला,मुरली वाला,चोर बड़ा।
चुपके से आया,माखन खाया,मुख लिपटाया,फोड़ घड़ा।
कान्हा यमुना-तट,सूने पनघट,राधा का घट,फोड़ गया।
वो तेज हिरण सा,चंचल मन सा,तेज पवन सा,दौड़ गया।
ललित
रजनी छंद
2122 2122,2122 2
दो दो तुकांत
रजनी छंद
ज़िंदादिली
ज़िंदगी ज़िंदादिली का,नाम ही तो है।
है ग़मों से जो भरा वो,जाम ही तो है।
प्यार से जो आदमी इस,जाम को पीता।
हो न उसका जाम खुशियों,से कभी रीता।
ललित
रजनी छंद
खुशबू
फूल से खुशबू चुराना,सीखलो प्यारे।
चाँदनी से मुस्कुराना,सीखलो प्यारे।
पुष्प सौरभ का खजाना,जानती दुनिया।
चाँदनी गाती तराना,जानती दुनिया।
ललित
रजनी छंद
चाँदनी
चाँद सा महबूब पाकर,चाँदनी चहकी।
प्यार में मदहोश होकर,चाल भी बहकी।
बादलों में छुप गया जब, चाँद सजनी का।
चाँँदनी भी त्याग बैठी,साथ रजनी का।
ललित
छंद रजनी
श्याम-सुंदर
श्याम सुंदर साँवरे मन,मोहना प्यारे।
स्वप्न में ही दर्श देने,श्याम आ जा रे।
नैन में भर लूँ सलोनी,साँवरी सूरत।
लूँ बसा दिल में कन्हैया,मोहनी मूरत।
ललित
गीतिका छंद
समय
भागता जाता समय है,एक पल रुकता नहीं।
सिर झुका देता उसी का,जो कभी झुकता नहीं।
चाहता यदि तू समय ये,साथ दे तेरा खरा।
तो समय के साथ चल ले,पथ बदल कर तू जरा।
ललित
छंद रजनी
समंदर
प्यार का प्यासा समंदर,हाय खारा क्यों?
हर नदी ने दिल उसी पर,आज वारा क्यों?
पा समंदर का सहारा,हर नदी झूमे।
बन समंदर की लहर वो,आसमाँ चूमे।
ललित
छंद रजनी
अम्बिका
अम्बिका जगदम्बिका माँ,लाल मैं तेरा।
थाम ले इस भँवर में माँ,हाथ तू मेरा ।
है घटा घन घोर छाई,दुःख की काली।
द्वार पर तेरे खड़ा मैं,हाथ हैं खाली।
ललित
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