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-------दुर्मिल सवैया छंद विधान-----
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1. यह एक वार्णिक छंद है।
2.इसमें चार चरण होते हैं।
3.चार समतुकांत रखे जाते हैं।
4.आठ सगण अर्थात्
112 112 112 112 112 112 112 112
5.लघु लघु गूरू ×8
6.लय की सुगमता के लिए 12 वें वर्ण पर यति विधान..
7.क्योंकि यह एक वार्णिक छंद है अतः इसमें लघु के स्थान पर लघु व गुरू के स्थान पर गुरू ही रखना होता है।
~~~~~उदाहरण~~~~~
मन के तम को अब दूर करो,विनती करता कर जोड़ हरे।
इस जीवन में अब आस यही,कर दो मन की सब त्रास परे।
प्रभु आप अधार हो प्राणन के, जब होय कृपा हर ताप टरे।
हर लो अब घोर निशा तम को, मम जीवन में नव दीप जरे।
**********रचनाकार*************
ललित किशोर 'ललित'
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