मई 2019
कर्मठ नारी
मुक्तक
नयनों में हैं सुंदर सपने,सिर पर बोझ तगारी का।
भाल पसीने में है भीगा,ऐसी कर्मठ नारी का।
मजदूरी कर पेट पालना,और पढ़ाना बच्चों को।
मुश्किल काम बड़ा है पर ये,जीवन है खुद्दारी का।
ललित किशोर 'ललित'
साजन-सजनी
प्रदीप छंद
16-13
मधुर-मधुर कल-कल लहरों की,कर्णों में रस घोलती।
पतवारों के दम पर बढ़ती,नैया ढुल-मुल डोलती।
शीतल सुरभित पवन सुहानी,सहलाती जब गात को।
साजन अँखियों में ही कहता,समझो सजनी बात को।
ललित
गोरी के अँगना
प्रदीप छंद
16-13
गोल-गोल मोती सी बूँदें,लेकर बदरा आ
गए।
गोरी के अँगना में रिम-झिम,वो बूँदें बरसा गए।
भिगो दिया गोरी का तन-मन,रंग-रँगीली शाम में।
भीगे वसनों में लिपटी वो,खोई घर के काम में।
ललित
नन्हा कान्हा
प्रदीप छंद
16-13
मैया इक मुरली मँगवा दे,नन्हा कान्हा मचल गया।
मोर-पंख का मुकुट लगाया,नन्हा मोहन बहल गया।
गैया के सँग वन जाऊँगा,लेकर लकुटी साथ में।
ग्वाल-बाल सँग नृत्य करूँगा,लिए बाँसुरी हाथ में।
ललित
05.05.19
दोहा
जीवन की इस दौड़ का,पकड़ न आए छोर।
मन चाहे कुछ और है, मिलता है कुछ और।
' ललित '
मुस्कान
छंद प्रदीप
कुछ बन्दे अंजाने भी हैं,हँसी और मुस्कान से।
कमा न पाए मुस्कानें जो,जीवन की दूकान से।
मन्द-मधुर मुस्कानों की जो,नर हैं कीमत जानते।
अधरों पर मुस्कानें रखने,की वो मन में ठानते।
ललित
मुस्कान
छंद प्रदीप
चुरा न पाए मुस्कानें जो,जीवन की दूकान से।
कुछ बन्दे अंजाने भी हैं,हँसी और मुस्कान से।
मन्द-मधुर मुस्कानों की जो,नर हैं कीमत जानते।
अधरों पर मुस्कानें रखने,की वो मन में ठानते।
ललित
मुस्कान
मुक्तक
कुछ मुस्कानें ऐसी होती,जादू सब पर जो करें।
कुछ मुस्कानें दीन-दुखी के,दुःख और चिन्ता हरें।
कुछ मुस्कानें पगी प्रीत में,प्रियतम को करती सुखी।
होयँ कुटिल कुछ मुस्कानें जो,नेता नित मुख पर धरें।
ललित
मुस्कान
हंस गति छंद
11-9 यति पूर्व लघु अंत दो गुरू
अधरों पर मुस्कान,गाल पर लाली।
मदिर-गुलाबी नैन,चाल मतवाली।
मस्त नज़र के तीर,चला कर गोरी।
गयी चली वो हाय,गाँव की छोरी।
ललित
श्रृंगार रस
हंस गति छंद
11-9 यति पूर्व लघु अंत दो गुरू
कल-कल बहती जाय,नदी दीवानी।
सागर के सँग प्यार,करेगी रानी।
मिलने की है चाह,बला की मन में।
लगी अजब सी आग,मचलते तन में।
खारी हो जल-धार,भले साजन की।
लेगी बहियाँ थाम,करेगी मन की।
लग सागर के अंग, नदी बहकेगी।
तन-मन होंगें एक,प्रीत महकेगी।
ललित
आपा-धापी
आपा-धापी में बीता जो,जीवन वो क्या जीवन है?
वो घर भी क्या घर है जिसमें,नहीं लगा तुलसी-वन है?
हंस गति छंद
11-9 यति पूर्व लघु अंत दो गुरू
माँ
माँ है जिसके पास,वही बड़-भागी।
माँ चरणों का खूब,रहे अनुरागी।
करता है जो पूत,मात की सेवा।
बन जाए हर काम,चखे वो मेवा।
ललित
हंस गति छंद
आनंद लीजिए
वृन्दावन सरताज,कन्हैया प्यारा।
बाँका वो नँद-लाल,जगत से न्यारा।
पल में करे कमाल,मटकियाँ फोड़े।
हाथ न आए श्याम ,गोपियाँ दौड़ें।
ललित
14.05.19
कान्हा
मुक्तामणि छंद
13-12, यति पूर्व लघु गुरु,
अंत दो गुरु,दो-दो समतुकांत
माखन-मिश्री हाथ में,लेकर कान्हा भागा।
लीला जिसने देख ली,भाग्य उसी का जागा।
छोटा सा नँद-लाल ये,माखन-चोर निराला।
माखन जिसको दे वही, हो जाता मतवाला।
ललित
स्वप्न सुनहरे
मुक्तामणि छंद
13-12, यति पूर्व लघु गुरु,
अंत दो गुरु,दो-दो समतुकांत
स्वप्न सुनहरे देखते,जीवन सब का बीते।
कुछ की भरती झोलियाँ,कुछ रह जाते रीते।
धर्म-राज की पोथियाँ,रखतीं सब का लेखा।
पाप-पुण्य जो भी किया,देखा या अनदेखा।
ललित
16.05.19
मन पागल
मुक्तक
मन पागल क्यों मचल रहा है?
क्या भीतर कुछ उबल रहा है?
क्या कोई कविता लिखने को
मन में लेखक टहल रहा है?
अपना जिसको मान रहा था
जिसको अपनी जान कहा था
मृगमरीचिका सम वो निकली
दिल में जिसका प्यार बहा था।
क्यों अक्सर ऐसा है होता ?
ये दिल जिसके प्यार में खोता
प्यार नहीं उसको है पचता
तब बेबस दिल प्यार है ढोता।
ललित
15.05.19
दिल की बातें
मुक्तामणि छंद
13-12, यति पूर्व लघु गुरु,
अंत दो गुरु,दो-दो समतुकांत
कौन सुने किससे कहूँ,दिल की बातें सारी?
किसने नैया दी डुबो,अरु किसने है तारी?
बेगाने अपने हुए,मीत हुए बेगाने।
नहीं मिला वो मीत जो,दिल की पीड़ा जाने।
ललित
तुलसी
मुक्तामणि छंद
13-12, यति पूर्व लघु गुरु,
अंत दो गुरु,दो-दो समतुकांत
फूलों की हों क्यारियाँ,मनहर सौरभ वाली।
सुंदर फूलों से लदी,हर गुलाब की डाली।
उस घर की तुलना भला,किस मंदिर से होगी।
तुलसी की सेवा जहाँ,करता हो इक योगी।
ललित
श्रृंगार रस
मुक्तामणि छंद
13-12, यति पूर्व लघु गुरु,
अंत दो गुरु,दो-दो समतुकांत
वाम नैन के पास जो,छोटा-सा तिल काला।
गोरी उसने ही मुझे,यूँ पागल कर डाला।
उस पर बाँकी चाल ये,और महकता गजरा।
दिल को घायल कर गया,नैनों का ये कजरा।
ललित
श्रृंगार रस
मुक्तामणि छंद
चाँद चाँदनी से रहे,हरदम कुछ शरमाता।
गोरी सुंदर चाँदनी,रूप बड़ा मदमाता।
टिम-टिम-टिम तारे करें,देख चाँदनी चम-चम।
मधुर-रास में नाचती, राधा-रानी छम-छम।
ललित
श्रृंगार रस
मुक्तामणि छंद
नैना ऐसे मद भरे,जैसे मदिरा प्याले।
अधर मधुर रस से भरे,तरसें पीने वाले।
नखरों की क्या बात है,मटक-मटक वो चलती।
नैनों से जादू चला,दीवानों को छलती।
ललित
मुक्तामणि छंद
कैसा होगा रास वो,कैसी होंगीं बातें?
विश्व-नियंता नाचता,था जब सारी रातें।
व्रज-रज का हर कण जहाँ,गीत प्रीत के गाता।
राधा के सँग गोपियाँ,करती थीं जगराता?
ललित
18.05.19
मुक्तामणि छंद आधारित गीतिका
छोटे से इक गाँव में,नानी जी का घर था।
छोटी सी थी झोंपड़ी,ऊपर इक छप्पर था।
मन्दिर था इक पास में,ठाकुर जी का प्यारा।
ठाकुर जी के बाग में,तुलसी-वन सुंदर था।
मीठे पानी का कुआँ,वहीं एक था गहरा।
मनहर सौरभ से भरा,मन्दिर का परिसर था।
होती थी नित आरती,साँझ ढले मंदिर में।
लगता मुझको तो बड़ा,सुंदर वो मंजर था।
कुल चार बैलगाड़ियाँ,थी नानी के घर में।
पहियों में जिनके कभी,नहीं हुआ पंचर था।
ललित
मुक्तामणि छंद
मैया में श्री राम का,दूत नाम हनुमंता।
ढूँढन आया आपको,दिल में हैं भगवंता।
राम-नाम की मुद्रिका,भेजी है रघुवर ने।
देख मुद्रिका नैन में,लगे अश्रु थे भरने।
ललित
20.05.19
शंकर छंद
वो मुस्कुराकर देख लेना,आपका इक बार।
था जान लेवा ही कसम से,आपका दीदार।
अब रात-दिन मैं देखता हूँ,आपकी तस्वीर।
फिर कर सकूँ दीदार ऐसी,है कहाँ तकदीर।
ललित
20.05.19
शंकर छंद
ऐसी दिखायी ज़िन्दगी ने,प्यार की तासीर।
अब आगयी है समझ में हर,बागबाँ की पीर।
जो प्यार का गुलशन सजाए,सींच कर दिन-रात।
उस बाग के कब सुमन मानें,बागबाँ
की बात?
ललित
शंकर छंद
सुन राधिका अब ध्यान से तू,सार की ये बात।
व्रज-गोपियों सँग मैं करूँगा,रास सारी रात।
जब छम-छमा-छम पायलें सब,की बजेंगीं
खूब।
परमात्म रस बरसात में हर,जीव जाए डूब।
ललित
16:11
चुनाव बीते खत्म हुआ सब,नेताओं का जोश।
इ वी एम में भाग्य बंद कर,जनता है खामोश।
झूठे-सच्चे चैनल खोलें,एग्ज़िट वाली पोल।
जनता के क्या कहने जो अब,हँसती है दिल खोल।
ललित
22.05.19
शब्द युग्म समारोह 258
चयनित युग्म"फटाफट'
स. अ. आ.श्री रवींद्र वर्माजी,सं.आ.कांति शुक्लाजी,
आ.उमा प्रसादजी एवं मंच को निवेदित
दो मुक्तक
1 मुक्तक
फिसल रहा है समय फटाफट,हाथों से अपने।
लेकिन देखे ये चंचल मन,नित्य नए सपने।
सपनों में डूबा मानव मन,भूल गया हरि को।
सुबह-सवेरे निकल पड़े वो,इस जग में खपने।
2 मुक्तक
करना है हर काम फटाफट,नहीं समय है पास।
भाग-दौड़ मानव जीवन का,हिस्सा है अब खास।
दो पल रुककर नहीं करे वो,प्रभु का थोड़ा ध्यान।
धन-दौलत-माया-ममता का,हर मानव है दास।
ललित
22.05.19
शंकर छंद
लव पर लिए मुस्कान ताजा,और स्वर में साज।
पा ले हजारों दर्द दिल में,घूमता नर आज।
जिससे कहे वो पीर दिल की,है कहाँ वो मीत?
डूबा हुए निज दर्द में भी,गारहा वो गीत।
ललित
मुक्तक
अपने दिल को ज़िंदा रख
यश-अपयश सुख-दुख जो आएँ,सबको थोड़ा-थोड़ा चख।
मीत मिलें या दुश्मन सबको,एक नज़र से ही तू लख।
जीवन की नैया तो भैया,डोलेगी डगमग-डगमग।
ज़िंदादिल हो कर जी प्यारे, अपने दिल को ज़िंदा रख।
ललित
शंकर छंद
नदिया ओढ़ चुकी है चुप्पी,आज झरने मौन।
सागर की लहरें चुप-चुप हैं,जिम्मेदार कौन?
बाँध बना छीनी मानव ने,नदी की आवाज़।
मानव ने दानव बन कर दी,बंजर धरा आज।
ललित
23.05.19
दोहे
हाथों के तोते उड़े, हुए शर्म से लाल।
धोती-कुर्ता कर सका,नहीं कोई कमाल।
वो चिल्लाते रह गए, चोर है चौकीदार।
दिखा अँगूठा बन गई, चोरों की सरकार।
24.05.19
शंकर छंद
मनमोहना तेरे सिवा है,और मेरा कौन?
यूँ मोह-माया ने छला मैं,हो गया हूँ मौन।
कर दे कृपा घनश्याम ऐसी,आत्म का हो ज्ञान।
अपने-पराए सब भुला निशि,दिन करूँ मैं ध्यान।
ललित
शंकर छंद
जो बात मन को मथ रही वो,क्यों न कह दूँ आज?
क्यों ज़िन्दगी हर-पल दिखाती,इक नया अंदाज़?
इक पल सुनहरापन लिए तो,दूसरा रँग हीन।
इक क्षण भरा आनंद से तो,दूसरा ग़मगीन।
ललित
शंकर छंद
ये ज़िंदगी इक खेल ही है,मानलो ये बात।
हर पल यहाँ मिलती नए इक,दर्द की सौगात।
हँसकर सहे हर दर्द को जो,है वही जाँबाज।
वो है सफल इंसान पहने ,दर्द का जो ताज।
ललित
शंकर छंद
यह भोर की बेला सुहानी,दे रही संदेश।
है मुस्कुराहट से भरा हर,प्रात का परिवेश।
मुस्कान कुछ उससे चुरा तुम,मुस्कुराओ मीत।
फिर चहचहाहट में परिंदों,की सुनो संगीत।
ललित
दिल पर लगा जो घाव वो है,सालता दिन- रात।
शंकर छंद
कुछ यूँ ही
जो चाँद धरती पर बिखेरे,
चाँदनी का नूर।
है वो धरा का चंद्रमा क्यों,
आज इतना दूर?
जिस चाँदनी से है चमकता,चाँद का संसार।
वो चाँदनी निश्छल करे क्या,
चाँद से है प्यार?
ललित
शंकर छंद
ट्रेन में से
जो आँसुओं का दर्द समझें,वो कहाँ नर खास।
सब सेल्फियों में भूल जाते,दर्द का अहसास।
मरती न मानवता अगर यूँ,कैमरे में आज।
तो जान बच जाती किसी की,मौत आती बाज।
ललित
शंकर छंद
ट्रेन में से
जितना करो अभ्यास उतनी, लय पकड़ में आय।
माँ शारदे फिर लेखनी को,शब्द देती जाय।
हो छंद कोई भी मगर हो ,लेखनी में जोश।
रचना बने फिर खूबसूरत,बद्ध-लय बिन दोष।
ललित
जो घोंसला है नित बनाती,जोड़ तिनके बेशुमार।
है होगये हमतो उसी की,चहचहाहट पे निसार।
28.5.19
बाँसुरी
कुण्डल छंद
बाँसुरी की मनुहार,राधिका न माने।
छूती क्यों श्याम-अधर,जिया को जलाने।
राधा का कृष्ण-प्यार,जलन को बढ़ाए।
बाँसुरिया अधर धरे,श्याम मुस्कुराए।
ललित
बाँके बिहारी
कुण्डल छंद
बाँके-बिहारी सुनो,भक्त ये पुकारे।
चार कदम चलो साथ,दीन के सखा रे।
भक्त-माथ धरो हाथ,मोर-मुकुट धारी।
ले चलना श्याम जहाँ,चाह हो तुम्हारी।
ललित
भाव
कुण्डल छंद
मन में जो भाव उठें,शब्द में पिरोना।
कुण्डल है खास छंद,ताल-लय भरोना।
एकदंत दयावंत ,चार भुजा धारी।
इसी छंद लिखी गयी,आरती उतारी।
ललित
30.5.19
प्यार का पुजारी
कुण्डल छंद
अँखियों में प्रीत लिए,प्यार का पुजारी।
सजनी की राह तके,रात-रात सारी।
शशी ओर हाथ उठा,माँगता दुआ ये।
रुके रहो चाँद जरा,भोर हो न जाए।
ललित
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