भ्रूण हत्या

सिन्धु छंद
कोख से पुकार

अरे ओ तात माँ तुमसे करूँ विनती।
जरा तुम पाप की अपने करो गिनती।
न मारो कोख में मुझको बचाओ तुम।
न अपने पाप का बोझा बढ़ाओ तुम।

कि मैं भी चाहती हूँ देखना जग को।
न रोको आप अपने ईश के मग को।
करूँगी नाम रौशन आपका ऐसे।
नहीं करता कभी सुत तात का जैसे।

ललित

करुण रस
पियूष वर्ष छंद

बेटियों का कोख में करते शमन।
पुष्प कैसे अब खिलाएगा चमन।
मात को ही बेटियाँ दुश्मन लगें।
पूत से ही भाग्य क्या सबके जगें?

ललित

No comments:

Post a Comment