श्रृंगार रस

सार छंद

नभ में काले बादल साजन,और इधर तुम काले।
तुम से तो अच्छे हैं गोरे,चार तुम्हारे साले।
काश तुम्हारा रँग भी साजन,मेरे जैसा होता।
सुंदर सेल्फी हम ले लेते ,बादल नभ में रोता।

ललित

सार छंद

साजन तेरी इस सजनी का,जियरा धक-धक करता।
मिलन-प्यास अति बढ़ जाती जब,सावन झर-झर झरता।
क्या तेरे सीने में जालिम,दिल का नाम नहीं है?
या मुझको बाहों में भरना ,तेरा काम नहीं है?

ललित

सार छंद

साजन तू क्यों समझ न पाए,उस बादल की बातें?
छोड़ देश परदेश बसा है,सूनी करके रातें।
क्या पैसा ही है सब कुछ ओ,पागल साजन मेरे।
कब तू उसको समझेगा जो,प्रीत बसी मन मेरे?

ललित

सार छंद

काले-काले बादल नभ में,उमड़-घुमड़ कर छाएँ।
सावन के झूलों में झूलें,सखियाँ सब इठलाएँ।
कोई चुनरी पहन नाचती,ओढ़ दुपट्टा कोई।
अँखियों में साजन की मूरत,लिए हुए सब खोईं।

ललित

श्रृंगार रस
पियूष वर्ष छंद

गाल पर लाली लगा नाजुक कली।
तीर नजरों में भरे पथ में मिली।
थे अधर आधे खुले कुछ इस तरह।
चूम लेगी पास आकर जिस तरह।

ललित

पियूष वर्ष छंद
पूरी रचना
श्रृंगार रस एक अलग अंदाज में

प्यार की दीवानगी भी खूब है।
शायरी करता जहाँ महबूब है।
प्रेमिका दिखती उसे वह हूर है।
नैन में जिसके परी सा नूर है।

पायलें बजती बड़ी प्यारी लगें।
धड़कनें रुकती उसे सारी लगें।
जब सजनियाँ अंक में उसके गिरे।
यूँ लगे आकाश तारों से घिरे।

चाँदनी उसको लगे प्यारी बड़ी।
शायरी पे जो सदा भारी पड़ी।
जब सजनियाँ चाँदनी में आ मिले।
भूल जाता प्यार में वो सब गिले।

सावनी शीतल फुहारों के तले।
तन-वदन अंगार पर जैसे जले।
जब सजनियाँ झूलती है बाग में।
डाल देती घी जिगर की आग में।

शायरी करनी जिसे आती न हो।
जुल्फ की छाया जिसे भाती न हो।
कब सजनियाँ फिर उसे प्यारी लगे?
शायरी भी एक बीमारी लगे।

शायरों की शायरी में प्यार है।
शायरी से ही जवाँ संसार है।
शायरी की रूह सजनी जब बने।
खूबसूरत सी गज़ल वो तब बने।

ललित

चित्र आधारित
विष्णु पद छंद

चंचल हिरणी जब नैनों से,छुप-छुप वार करे।
कजरारी अँखियों का कजरा,दिल को चीर धरे।
नैन झुका कर बिन बोले वो,बात कहे मन की।
साजन से जब नैन मिले त़ो,चूड़ी भी खनकी।

मिलने को आतुर हैं सजना,गजरा महक रहा।
सजनी का दिल धक्-धक् करता,थोड़ा बहक रहा।
नैनों में सजनी के सुंदर,सपने चमक रहे।
मादक सपनों में खोए दो,नैना दमक रहे।

कुछ ही पल में मधुर-मिलन के,सच होंगें सपने।
इक दूजे के मन में घुलते,तन होंगें अपने।
सजनी की साँसों में साजन,महकेंगें गुल से।
और करेंगें मीठी-मीठी,बातें बुल-बुल से।

मधुर मिलन की हाय रात ये,छोटी है कितनी।
उम्र सावनी लघु-बूँदों की,होती है जितनी।
साजन-सजनी कहें काश ये,वक्त यहीं ठहरे।
मगर प्यार की विनती सुनकर, वक्त नहीं ठहरे।

ललित किशोर 'ललित'

कुण्डलिनी
सावन और कवि

सावन की बातें मधुर,मधुर कोकिला गान।
कवियों का मन मोहती,सावन की मुस्कान।
सावन की मुस्कान,लेखनी में रस घोले।
कविता हो या शै'र,झमाझम झम-झम बोले।

ललित

सार छंद
श्रृंगार रस
1
सावन बादल और झमाझम,बारिश का यह रैला।
भिगो गया गौरी को नीरद,खेले अद्भुत खेला।
शीतल मंद समीर बिखेरे,खुशबू माटी वाली।
मदहोशी छाई गौरी पर,बढ़ी गाल की लाली।

साजन नजर चुराकर देखे,भीगा तन गौरी का।
कैसे चिपक गया है तन से,चुस्त वसन गौरी का।
शरमा कर फिर नजरें नीची,कर सजनी सकुचाई।
भीगे गालों पर सजना ने,अँगुली एक  नचाई।

अँगुली से छूकर साजन ने,कैसी अगन लगा दी?
प्रणय-प्यास सजनी के मन में,एकाएक जगा दी।
उलझ गईं मोती-सी बूँदें,गौरी के बालों में।
कुछ बूँदें चम-चम-चम चमकें,गौरी के गालों में।

सिकुड़ी-सिमटी पगली-सी वो,झूम उठी कुछ ऐसे।
आलिंगन में ले साजन ने,चूम लिया हो जैसे।
बदरा भी अब नील-गगन में,दूर कहीं छितराए।
बलखाती सजनी सजना की,बाहों में छिप जाए।

ललित

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