हास्य-व्यंग्य

पियूष वर्ष छंद
दर्द घुटनों का

दर्द घुटनों का हमें यह कह गया।
वक्त जीवन का बहुत कम रह गया।
जिन्दगी में भक्ति कुछ की तो नहीं।
श्याम सुंदर से लगाई लौ नहीं।

सोचते हम रह गये मन में यही।
भक्ति कर लेंगें अभी ठहरो सही।
पर जवानी ने छलावा यूँ किया।
बाल काले कर जिया बहला लिया ।

बाँटते सबको रहे थे ज्ञान हम।
अब करें कुर्सी लगा कर ध्यान हम।
हाय रे चंचल मना अब तो समझ।
ईश की आराधना अब तो न तज।

ललित
घुटनों के दर्द का मरीज

कुण्डलिनी
भाँग

कौन पकौड़े तल रहा,ऊँचे आसन बैठ।
कौन बैंक को लूटता,किसकी ऊँची पैठ?
किसकी ऊँची पैठ,सोचता काहे प्यारे?
आज कुएँ में भाँग,घोल बैठे हैं सारे।

ललित

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