सार छंद
टिक-टिक-टिक-टिक करती घड़ियाँ,समय नापती जाती। अच्छे बुरे पलों की सारी,खबर छापती जाती। कैसा भी हो समय घड़ी को,फर्क कहाँ है पड़ता? चलती रहती घड़ियाँ सूरज,गिरता चाहे चढ़ता।
ललित
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