दिसम्बर 2018 रचनाएँ

दिसम्बर 2018

मुक्तक

हाड़ कँपाती सर्दी में जब,काँप रहे हैं दोनों हम।
नए वर्ष के स्वागत में बम,फूट रहे हैं धड़ाक-धम।
झम-झम-झम-झम-झमाक झम-झम,
छम-छम-छम-छम छमाक-छम।
थाप दे रही नए साल की,हर दिल में मधुरिम सरगम।

'ललित'

छंद सिंधु
1222 1222 1222

निराली भोर  आई है नए रँग में।
सुनहरे स्वप्न लायी है नए सँग में।
चलो अब काम कोई हम नया कर लें।
नई इक सोच जीवन में जरा भर लें।
ललित

छंद सिंधु
1222 1222 1222

सिवा तेरे नहीं कोई कहीं दूजा।
करूँ मैं श्याम बस तेरी सदा पूजा।।
जपूँ मैं नाम आठों याम राधा का ।
नहीं है जिंदगी में नाम बाधा का।

ललित

छंद सिंधु
1222 1222 1222

अहंकारी जनों की बात है न्यारी।
न करते वो कभी इक बात भी प्यारी।
रहें खोए सदा अपने खयालों में।
उलझते हैं वहाँ रिश्ते सवालों में।

ललित

छंद सिंधु
1222 1222 1222

हवा भी अब यहाँ ग़मगीन सी दिखती।
युवाओं की यही तकदीर है लिखती।
हवा में भी घुला है अब गरल ऐसा।
नहीं है साँस लेना भी सरल जैसा।

ललित

छंद सिंधु
1222 1222 1222

बहारों सी महक तेरी अदाओं में।
सितारों सी चमक तेरी निगाहों में।
अधर तेरे लरज कर जब फड़क जाते।हजारों दिल धड़क कर फिर धड़क जाते।

ललित

छंद सिंधु
1222 1222 1222

बहारें छोड़ गुलशन को चली जाएँ।
नहीं खुशबू भरे तब फूल खिल पाएँ।
अरे ओ आसमाँ वाले कहाँ है तू?
बहारें भेज उस दर से जहाँ है तू।

ललित

उल्लाला छंद

जीत किसी की हो रही,और किसी की हार है।
जनता न्यायाधीश ये,जनता का दरबार है।

जनता के दरबार में,न्याय अनोखा होय है।
चुने किसी को प्यार से,और किसी को धोय है।

ललित

उल्लाला छंद

जीवन बीता जा रहा,पल-छिन सुबहो शाम में।
वो हर-पल अनमोल है,डूबे जो हरि-नाम में।

कई मीत मिलते हमें,जीवन की इस राह में।
सच्चा है वो मीत जो,चाह मिला दे चाह में।

ललित

उल्लाला छंद

होड़ा-होड़ी मत करो,जीवन की इस राह में।
खुशियाँ छूटी जा रही,और खुशी की चाह में।

छोर खुशी का ढूँढता,फिरता हर इंसान है।
मन में ही खुशियाँ छुपी,इस सच से अंजान है।

ललित

उल्लाला छंद

पूरब में सूरज उगा,सुबहा की सौगात में।
कान्हा की सूरत दिखी,किरणों की बरसात में।
'ललित'

उल्लाला छंद

सूरत से नमकीन है,मीठी-सी मुस्कान है।
बरसाने की छोकरी,थोड़ी सी नादान है।

रंग बिखेरे प्यार के,बाँसुरिया घनश्याम की।
हर धुन में माला जपे,राधा जी के नाम की।

ललित

उल्लाला छंद

पूजा जिसने प्यार से,उस लड्डू-गोपाल को।
कोय न बाँका कर सके,उस साधक के बाल को।

वर्षा होती प्यार की,अँखियों से घनश्याम की।
ओत-प्रोत है प्रीत से,माटी ये व्रज-धाम की।

ललित

उल्लाला छंद

बड़ी निराली चाल ये,चलता काल-कराल है।
राजा को करता यही,पल-भर में कंगाल है।

राज बदल जाता यहाँ,नेता बदले बात है।
जनता को छलती रही,नेताओं की जात है।

ललित

उल्लाला छंद

मीठी-सी मुस्कान जो,इन अधरों को चूम ले।
सँग-सँग तेरे साजना,सारा जग ही झूम ले।

झूम-झूम ये आसमाँ,देखे तुझको प्यार से।
जब भी तेरी ये नजर,चूमे मुझको प्यार से।

ललित

उल्लाला छंद

पिया मिलन की आस में,नाचे मन का मोर ये।
पुलक रहा हिय साजना, होकर भाव विभोर ये।

तेरे मेरे बीच में,बंधन ऐसा प्रीत का।
बंधन होता है पिया,जैसा सुर-संगीत का।

ललित
👌👌👌

उल्लाला छंद

समझ न पाए श्याम जी,राधा जी की प्रीत को।
हुई प्रेम में बावरी,छोड़ जगत की रीत को।

श्याम संग यूँ रास में,झूमे बेसुध राधिका।
कहें बिरज की गोपियाँ,राधा न्यारी साधिका।

ललित

उल्लाला छंद प्रयास

उलझी मन की डोर ये,माया के जंजाल में।
बुद्धिमान नर भी फँसे,मन की टेढ़ी चाल में।

मन साधे सधता नहीं,अज्ञानी इंसान से।
साध सके विरला कहीं,मन को गीताज्ञान से।
ललित

उल्लाला छंद
समीक्षा हेतु

चाहूँ इस संसार से,उतना आदर प्यार मैं।
जितना संभव ही नहीं,इस सारे संसार में।

प्यार हृदय में ही बसे,अँखियों से ही झाँकता।
प्यार दे और प्यार पा,जग से क्यूँ है माँगता?

ललित

उल्लाला छंद

खुशियों के उस छोर से,कितना ये दिल दूर है?
घूँघट में खुशियाँ छिपी,मिलने से मजबूर है।

खुशी और आनंद में,इतना केवल द्वंद है।
लौकिक होती है खुशी,इह-लौकिक आनंद है।

ललित

उल्लाला छंद

चलो दिखाऊँ मैं तुम्हें,खुशियों की बाजीगरी।
गम के पीछे भी छिपी,खुशियों की कारीगरी।

गम देकर जाती खुशी,ऐसी ये बदमाश है।
खुशियाँ जिसमें हैं छिपी,उस गम को शाबाश है।

ललित

उल्लाला छंद
आद्या के लिए

परियों से सुंदर परी,आद्या प्यारी आज है।
लम्बी हैं लटकी लटें,लजवन्ती सी लाज है।

गाल गुलाबी गोरिया,गमक रहा गलहार है।
चम-चम-चम-चम चम-चमा,चूनर की चमकार है।

ललित

उल्लाला छंद
समीक्षा हेतु

अंग अंग जलने लगा,लगी जिया में आग है।
कब आओगे साजना,सूना अमिया बाग है।

सेज सजाई प्यार से,दिल से उठी पुकार है।
तुझ बिन ओ मेरे पिया,फीका सब श्रृंगार है।

ललित

उल्लाला छंद

राधे-कृष्णा जो जपे,उसका बेड़ा पार हो।
चाहे जो तू साँवरे,प्राणी का उद्धार हो।

मन-मन्दिर में श्याम हो,जिव्हा पर हरि-नाम हो।
चाहे जो तू साँवरे,मन मेरा निष्काम हो।

भूल जगत को मैं रहूँ,तेरी ही छवि याद हो।
चाहे जो तू साँवरे,पूरी ये फरियाद हो।

कर्म सभी अपने करूँ,फल की इच्छा
त्याग दूँ।
चाहे जो तू साँवरे,छोड़ द्वेष अरु राग दूँ।

शाँत सरल निर्मल हृदय,मुख पर सच का नूर हो।
चाहे जो तू साँवरे,चिंता कोसों दूर हो।

दिल हरदम है चाहता,तुझसे आँखें चार हों।
चाहे जो तू साँवरे,सपनों में दीदार हों।

ललित

उल्लाला छंद

हाथों में लड्डू लिए, ये लड्डू  गोपाल जी।
ना-ना करते खा रहे,नन्हे से नँद-लाल जी।

घुटनों-घुटनों चल रहा,कान्हा श्यामल रंग में।
छम-छम छम-छम चल रही, छुटकी राधा संग में।

ललित

उल्लाला छंद

शीतल मंद समीर ये,जितनी ठंडी हाय रे।
उतनी ही मादक मुई,तन में आग लगाय रे।

आ प्यारी सजनी जरा,अब तो लग जा अंग से।
बर्फानी इस ठण्ड में,दूर न जा इस ढंग से।

ललित

उल्लाला छंद

माँ शारद विनती यही,करता बारम्बार मैं।झन-झन-झन निश-दिन करूँ,
छंदों की झंकार मैं।

छंद लिखूँ उस प्रेम के,जो था राधा श्याम में।
गुरू-कृपा मिलती रहे,पूजन से इस काम में।

ललित

उल्लाला छंद

फूलों की ये क्यारियाँ,जीवन को मुस्कान दें।
मदमाती सौरभ लिए,मौसम को वरदान दें।

रंगों की अद्भुत छटा,छितराते हैं फूल ये।
देवों के सिर चढ़ तभी,इतराते हैं फूल ये।

ललित

उल्लाला छंद

कर्जा ले वापस जमा,करता अगर किसान है।
बेवकूफ वो है निरा,कहता हिन्दुस्तान है।

कर्जा होगा माफ ही,इक दिन हर इंसान का।
' कर्जे सबके माफ हों ',नारा हिंदुस्तान का।

ललित

कुछ यूँ ही😊

जिसका भी चल जाए सिक्का,
सिंहासन पर जाता बैठ।

पढ़ा-लिखा हो या अनपढ़ वो,
राजनीति में जिसकी पैठ।

सीखा है हमने यारों इस,
उछल-कूद से ये ही पाठ।

जुमलों से बनती सरकारें,
जुमलों से ही जाती बैठ।

'ललित'

उल्लाला छंद

भक्तों की विनती प्रभो,कर लेना स्वीकार ये।
छले नहीं हमको कभी,माया का विस्तार ये।

चलें धर्म की राह पर,करें कर्म उत्साह से।
सदा दूर रखना प्रभो,हमें पाप की राह से।

ललित

उल्लाला छंद

जीवन निकला जा रहा,पल-पल करके हाथ से ।
अब तो लगन लगा जरा,श्याम-द्वारकानाथ से।

क्यों तू अब भी खो रहा,माया-मोह बिछोह में?
खोजेगा कब जीव तू , ईश छिपा किस खोह में?

ललित

उल्लाला छंद

मौन रहो दिल में गुनो,जीवन की सौगात को।
गर्दन झटका झटक दो,ऐसी-वैसी बात को।

शाँत रहो समता रखो,राग-द्वेष को त्याग दो।
बाँसुरी को जीवन की,हल्का-फुल्का राग दो।

ललित
चौपाई

हे भक्तों के संकट हारी,कर्ज दिलाओ कृष्ण-मुरारी।
कर्जा लेकर मैं न चुकाऊँ,दीन-दुखी निर्बल कहलाऊँ।
सारा ऋण प्रभु माफ कराना,राजा से इंसाफ कराना।
मध्यम-जन पर टैक्स बढ़ाना,धनिकों पर ऋण बोझ चढ़ाना।
धनिक दिवाला रोज निकालें,राजनीति का आश्रय पालें।
बैंकों के भण्डार भरे हों,नेताओं के वोट खरे हों।

दोहा

विकास-वादी देश ये,रहा कर्ज में डूब।
वोटों की खातिर यहाँ,बनें नीतियाँ खूब।

ललित

उल्लाला छंद

इतनी सी करता अरज,श्याम तुम्हारा दास ये।
तुम हो मेरे साथ में,सदा रहे आभास ये।

रहना मेरे साथ तुम,विपदा में अरु हर्ष में।
नित्य-नियम से भक्ति हो,आगामी नव -वर्ष में।

'ललित'

उल्लाला छंद

चली गई वो बैठकर,छुक-छुक करती रेल में।
खरीदने कुछ साड़ियाँ,जयपुर से वो सेल में।

चार पराँठे दे गई,सूखी सब्जी साथ में।
और पुराना सूट हम,लेकर बैठे हाथ में।

ललित

रजनी छंद

2122  2122 ,2122  2

जिंदगी ये दर्द की ऐसी कहानी है।
हर खुशी में गम छिपाए जिंदगानी है।
खोजने जाएँ खुशी तो दर्द मिलता है।
नष्ट होने के लिए हर फूल खिलता है।

ललित

रजनी छंद

2122  2122 ,2122  2

आपकी मुस्कान से सारा समाँ निखरे।
फूल की खुशबू हवा में,जिस कदर बिखरे।
है यही तारीफ देखी, हुस्न वालों की।
शोखियों से मुस्कुराते,लाल गालों की।

ललित

रजनी छंद

2122  2122 ,2122  2

राधिका के श्याम-सुंदर, बाँसुरी वारे।
जादुई वंशी बजाकर गम हरे सारे।
साँवरे  तेरे दिवाने हैं सभी ग्वाले।
क्यों पिला डाले इन्हें ये प्रीत के प्याले?

ललित

रजनी छंद

2122  2122 ,2122  2

थामकर दामन हवा का साँस लेती है।
पर कहाँ खुशबू पवन का, साथ देती है?
कुछ पलों की ताजगी देकर हवाओं को।
भूल जाती वायु की दुर्लभ दुआओं को।

ललित

रजनी छंद

2122  2122 ,2122  2

रंग दिखलाए खुशी के, साथ में ग़म के।
जिंदगी का कारवाँ फिर, रह गया थम के।
ग़म खुशी के खोल देता, है कभी द्वारे।
नाव खुशियों की मगर, ग़म से नहीं हारे।

ललित

No comments:

Post a Comment