कुण्डलिनी
वोटों की बौछार से,भिगो दिए जब आप। नहीं भला क्यों हर सके,जनता के संताप? जनता के संताप,बढ़े हैं हद से ज़्यादा। कितनी जल्दी भूल,गए हो अपना वादा।
ललित
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