गीत संग्रह - 4

महाश्रृंगार छंद
गीत

चला आया मैं तेरे द्वार,छोड़कर ये सारा संसार।
श्याम बस इतनी है दरकार,मुझे कर देना भव से पार।

नहीं कर पाया तेरा ध्यान,नहीं पढ़ पाया वेद-पुरान।
नहीं कर पाया पूजा-पाठ,नहीं कर पाया गंगा-स्नान।
हाथ मैं तेरे जोड़ूँ रोज,एक तेरा ही है आधार।
श्याम बस इतनी है दरकार,मुझे कर देना भव से पार।

बनाया तूने सब संसार,चढ़ाऊँ क्या तुझको फल-फूल?
लगाना चाहूँ अपने भाल,प्रभो तेरे चरणों की धूल।
नहीं इस जग में कोई और,सुने जो मेरी करुण पुकार।
श्याम बस इतनी है दरकार,मुझे कर देना भव से पार।

करूँ कैसे तेरा गुणगान,श्याम तू तो है गुण की खान।
लगा दे मेरी नैया पार,जानकर बालक इक नादान।
अरे ओ मुरलीधर घनश्याम,मुझे दर्शन दे दे साकार।
श्याम बस इतनी है दरकार,मुझे कर देना भव से पार।

ललित

ताटंक छंद गीत

ऐसी सरगम छेड़े नटखट,आलौकिक धुन में प्यारी।
झूम उठें सब गोप-गोपियाँ,नाचें सब नर औ' नारी।

कान्हा की वंशी क्या बोले,राधा समझ नहीं पाई?
लेकिन वंशी सुनने को वो,नंगे पाँव चली आई।
मुरली की धुन ऐसी प्यारी,भूल गई दुनिया सारी।
ऐसी सरगम छेड़े नटखट,आलौकिक धुन में प्यारी।

कान्हा की बाहों में आकर,सिमट गई गोरी-राधा।
अधर अधर से मिलना चाहें,डाल रही मुरली बाधा।
वंशी ने क्या पुण्य किये थे,अधरों पर जो है धारी?
ऐसी सरगम छेड़े नटखट,आलौकिक धुन में प्यारी।

दुनिया में सबसे सुंदर है,राधा कान्हा की जोड़ी। 
जिसने हृदय बसा ली ये छवि,प्रीत वही समझा थोड़ी।
इसीलिए राधा-मोहन की,दीवानी दुनिया सारी।
ऐसी सरगम छेड़े नटखट,आलौकिक धुन में प्यारी।

ललित

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छद श्री सम्मान