पियूष वर्ष छंद
प्रेम/प्रीत/प्यार
प्यार की दुनिया भुलावा तो नहीं?
प्रीत तेरी इक छलावा तो नहीं?
प्रेम पर विश्वास मैंने है किया।
बुझ न पाए आस का दीपक पिया।
आस पर ही ये टिका संसार है।
प्यार करना क्यूँ बना व्यापार है?
हाथ जो थामा पिया मत छोड़ना।
प्रेम का धागा पिया मत तोड़ना।
है जरूरी प्रीत जीने के लिए।
प्रेम के बिन आदमी कैसे जिए?
प्रीत के बिन है भला क्या जिन्दगी?
प्रेम ही करना सिखाता बन्दगी।
ललित
पियूष वर्ष
देख लो हम को जरा तुम प्यार से।
मानते हो क्यों नहीं मनुहार से?
प्रीत के बिन जिन्दगी दुश्वार है।
जान लो हम को तुम्हीं से प्यार है।
ललित
पियूष वर्ष छंद
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2122 2122 212
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प्यार तेरा ये दिखावा तो नहीं।
वासना का इक छलावा तो नहीं।
दूरियों में प्यार की सौरभ
बसे।
प्रीत तन की वासना में कब बसे।
ललित
पियूष वर्ष
हमसफर
हम सफर जो साथ मेरे थे चले।
नैन को भी जो रहे लगते भले।
खूब था जिन पर मुझे विश्वास भी।
और जिनसे थी लगाई आस भी।
छोड़ वो मुझको अचानक चल दिए।
प्रीत ने ऐसे भला क्यूँ फल दिए?
नाज था जिस प्यार पर मुझको सदा।
आज वो ही कह गया है क्यों विदा?
ललित
कुण्डलिनी
प्यार
प्यार तुझे यदि चाहिए,बाँट प्यार सौ बार।
बाँटे से फूले-फले,ये ऐसा व्यापार।
ये ऐसा व्यापार,नहीं जिसमें है घाटा।
जितना बाँटे प्यार,रहेगा उतना ठाटा।
ललित
8.2.18
सार छंद
कुछ अपनों में कुछ सपनों में,जीवन के दिन बीते।
अपनों ने अब तेवर बदले,सपने निकले रीते।
मानव-मन कितना पागल है,सोच नहीं जो पाए।
दोपहरी में गायब होते ,खुद अपने ही साए।
ललित
सार छंद
दिल कितना नाजुक होता है,ये हमने अब जाना।
वो ही तोड़ गया इस दिल को,जिसको था रब माना।
दिल के टूटी किरचों की भी,देखी खूब रवानी।
टूट-टूट कर और टूटती,जुड़ने की कब ठानी।
ललित
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