19 हरिगीतिका छंद साझा काव्य संग्रह

हरि गीतिका छं
1
संसार की आशा तजो तुम,राम रघुवर को भजो।
उद्धार यदि हो चाहते तो,आप अन्दर से सजो।
जिस नाम से तुम को पुकारे,आज ये संसार है।
वह नाम इस तन को मिला ये,मानने में सार है।
तन के किरायेदार तुम क्यों,प्यार तन से कर रहे।
प्रभु को बना लो यार तुम क्यों,खार मन  में भर रहे।
नर तन विषों की खान है ये,बात मन से मान लो।
प्रभु राम सुख के धाम हैं ये,राज पावन जान लो।
2
बाली उमर में ब्याह जीवन ,नष्ट मत कर दीजिए।
पढ़-लिख बनूँ मैं आत्म-निर्भर,नेक अवसर दीजिए।
नाजुक कली हूँ बाग की मैं,रौंद यूँ मत डालिये।
सौरभ बनूँ इस बाग की मैं,नेह से यूँ पालिये।।
3
नाना विचारों के भँवर में,डूबते बिन बात वो।
मुख पर लगाते हैं मुखौटे,नित नये दिन रात वो।
जो बात मन में सोचते हैं,भाव वो तन में नहीं।
जो भाव मुख पर दीखते हैं,सोच वो मन में नहीं।
4
लेता रहूँ मैं नाम तेरा,रात-दिन प्रतिपल प्रभो।
ऐसा मुझे वरदान दे दो,जाप हो अविरल प्रभो।।
चाहूँ नहीं धन-धान्य वैभव,मान औ' सम्मान मैं।
करता रहूँ हरि-भजन का ही,गान औ' रसपान मैं।
'ललित'
5
हरि गीतिका
कन्या भ्रूण हत्या

क्या भूल मुझ से हो गई माँ,त्याग जो मुझको रही?
क्यों पुत्र जनने की ललक यों,आज हो तुझको रही?
देखा नहीं,जाना नहीं है,जिन्दगी के खेल को।
तू दे सहारा,बेसहारा,बाग की इस बेल को।

ललित
हरिगीतिका

वो कौन सा इंसान है जो,मान का भूखा नहीं?
वो कौन सा दरबार है जो,दान का भूखा नहीं?
फिर मान क्या ,अपमान क्या जब,देह माटी से बनी?
फिर दान क्या,अनुदान क्या जब,देह पापों से सनी?
'ललित'

जो बात लब से हो कही वो,बात भी क्या बात है?
जो बात कानों से सुनी उस,बात की क्या जात है?
जो बात दिल ने हो कही वो,बात ही तो खास है।
जो बात दिल ने हो सुनी उस,बात में आभास है।
'ललित'

हरिगीतिका
खुशी

ये दिल न जाने क्या खुशी है,और गम क्या चीज है।
हर दिल खुशी का आसमाँ है,गम खुशी का बीज है।
सारा जहाँ ये भाड़ में भी,जा पड़े तो गम नहीं।
दिल में खुशी का जो समन्दर,है समाया कम नहीं।
'ललित'

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छद श्री सम्मान