12 गीतिका छंद साझा काव्य संग्रह

गीतिका छंद
1
हे प्रभो!अब ज्ञान ऐसा,दो यही विनती करें।
रात दिन हर साँस में प्रभु, नाम की गिनती करें।।
अति मनोहर आपकी छवि,नैन नित देखा करें।
आपका शुभ नाम लेकर,भाग्य का लेखा भरें।।
2      माँ को समर्पित

माँ तुम्हारा पाक दामन,याद मुझको आ रहा।
वो तुम्हारा स्नेह मन को,आज भी सहला रहा।
रोज पाता था जहाँ मैं,दो जहाँ का प्यार माँ।
खोजता मैं फिर रहा हूँ,फिर वही संसार माँ।
3      नकाब

वो नकाबों में छुपे कुछ,चाल ऐसी चल रहे।
बेनकाबों के दिलों पर,दाल जैसे दल रहे।
जब नकाबों को उठाकर,कनखियों से झाँकते।
ढेर हो जाते वहीं जो,खूब ऊँची हाँकते।
4
जान ले जो पीर मन की,मीत उसको मानिए।
थाम ले जो डोर मन की,प्रीत उसको जानिए।
कामना मन की मिटा दे,प्यास सारी दे बुझा।
ज्ञान उसको मानिए जो,राह सच्ची दे सुझा।

5 आँचल

आपका आँचल वदन से,आज ढलका जो जरा।
कह रहे धरती गगन ये,और ढलका दो जरा।
बस रही खुशबू नशीली,आपके आँचल तले।
चाँद तारों को लजाते,आप बल खाते चले।

'ललित'

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