1 ताटंक छंद साझा काव्य संग्रह

ताटंक छंद
(1)
माँ की याद में

माँ मैं मूरख समझ न पाया,तेरे दिल की बातों को।
मेरी राह तका करती थी,क्यूँ सर्दी की रातों को?
मेरे सारे सपनों को माँ,तू ही तो पर देती थी।
मेरी हर इक चिन्ता को तू,आँचल में भर लेती थी।
आज अकेला भटक रहा हूँ,मैं इस जग के मेले में।
तेरी कमी अखरती है माँ,जब भी पड़ूँ झमेले में।
माँ तेरी यादों में मेरी,आँखें नीर बहाती हैं।
तेरी सीखें अब भी मुझको,राह सदा दिखलाती हैं।
(2)

पलकें झपका भोर रही है,निशा चली मुँह फेरे है।
कली-कली ने घूँघट खोला,तितली रंग बिखेरे है।
आसमान पर छायी लाली,गोरी ले अँगड़ाई रे।
पनघट पर बाजें पैंजनियाँ,चूड़ी बजे कलाई रे।
(3)
सुबह सुबह अपने खेतों में,धूप सुहानी भाती थी।
पनघट से गगरी ले गोरी,ठुमक ठुमक जब आती थी।
उसकी पायल की छम छम तब,नए तराने गाती थी।
दिल जाता था भूल धड़कना,साँसें थम ही जाती थीं।
4
सबसे सुंदर है इस जग में,राधा-कान्हा की जोड़ी।
जिसने हृदय बसा ली ये छवि,प्रीत वही समझा थोड़ी।
चौंसठ कला निपुण हैं कान्हा,शक्ति स्वरूपा हैं राधा।
राधा-कृष्ण की भक्ति कर लो,मिट जाएगी भव बाधा।
'ललित'

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