मदिरा सवैया सृजन


मदिरा सवैया 5.4.16
1
कौन कहे पगला तुझको अरु, कौन मजाक उड़ाय रहा।
सोच न ये सब बात कभी मन से हरि नाम जुड़ाय रहा।
पागल होकर तू भज ले सिय राम घड़ी
बिगड़ाय रहा।
जो मन में हरि नाम जपे अपना सुख भाग्य बढ़ाय रहा।
2
यौवन बीत गया सुख से अब सोच दिमाग लगा कुछ तो।
जो हरि वास करे मन में उस से अब प्रीत
पगा कुछ तो।
तात सुता सुत भ्रात सखा इन साथ विराग जगा कुछ तो।
जो हरि एक रमा जग में बस वो बन जाय
सगा कुछ तो।
3
बोल यहाँ हर बोल सदा अपने सुर तौल अमोल जरा।
खोल नहीं वह राज कभी जिसका रहना हमराज खरा।
भूल नहीं हरिनाम कभी प्रभुनाम बिसार न काज सरा।
डूब रहा मन काम सदा उसके मन का सुख चैन हरा।
4
कृष्ण दीवाने18.1.17
राधा गोविंद 18.1.17

गोप रहे करताल बजा मुरलीधर माधव
नाच रहा।
ग्वाल सखा हर एक वहाँ मन ही मन श्याम उवाच रहा।
तत्त्वगुणी नटनागर वो निज ज्ञान कथा सब बाँच रहा।
गोपिन रास सुहाय रहा मनमोहन बोलत साँच रहा।
5
कौन हरे मम पीर यहाँ सब घाव दिखावत हैं अपने।
व्यापत दारुण दु:ख प्रभो तव नाम लगा मन है जपने।
आप हरो मम पीर हरे सब टूटत जावत हैं सपने।
शोक हरो भव पार करो अब श्याम लगा तन है तपने।
6

मदिरा सवैया
प्रथम प्रयास
राकेश जी के सुझाव से परिष्कृत

मानव जीवन पाकर भी हरि भक्ति नहीं करता नर जो।
काल कराल उसे पल में दिखलाय धरातल
पामर जो।
भोग तजे अरु योग करे मन से भजता नटनागर जो।
मोक्ष उसे हर हाल मिले दिन रात जपे मुरलीधर जो।

ललित

मदिरा सवैया
दूसरा प्रयास
समीक्षा हेतु
राकेश जी के सुझाव से परिष्कृत

प्रीत करी तुमसे सजना कहती सखियाँ कटु बैन यहाँ।
लोग करें कुछ भी बतियाँ तुम संग बिना कब चैन यहाँ।
जाग कटें अब ये रतियाँ मिलने तरसें
मम नैन यहाँ।
सावन की ऋतु ये कहती नित आन मिलो अब रैन यहाँ।

ललित

मदिरा सवैया
तीसरा प्रयास
समीक्षा हेतु

चाल चले छमियाँ गज सी तन यौवन से गदराय रहा।
नैन मिलें चहके चिहुँके कर में गजरा इतराय रहा।
फूल झड़ें जब वो हँसती मन बागन को बिसराय रहा।
झूल रही जब बागन में हर फूल हँसी बिखराय रहा।

'ललित'
कृष्ण दीवाने/राधा गोविंद
मदिरा सवैया
पहला प्रयास
समीक्षा हेतु

शोभित हैं तरु पल्लव सुंदर शोभित वो यमुना तट है।
शोभित गोपिन के मुख सुंदर शोभित मोहन की लट है।
शोभित रास मनोहर सुंदर शोभित वो ब्रज का नट है।
शोभित देव निहारत हैं छवि शोभित वो ब्रज का वट है।

'ललित'

मदिरा सवैया
दूसरा प्रयास
समीक्षा हेतु

श्यामल कोमल निर्मल मोहन माखन का घट फोड़ गया।
ग्वाल सखा सब चाटत माखन साँवल बाहर दौड़ गया।
खीझ रही अब ढूँढ़त गोपिन चोर कहाँ मुख मोड़ गया।
ग्वाल कहें सब साँवल मोहन माखन देकर छोड़ गया।

'ललित'

मदिरा सवैया
पहला प्रयास
समीक्षा हेतु

नव वर्ष

आवन जावन खावन पीवन खेलन सोवन बातन में।
गीतन-गावन यौवन-सेवन सावन की बरसातन में।
लोम हुआ गत वर्ष सरासर छूकर हाथ पुरातन में।
देख हुआ नव वर्ष शुरू कर लो हरि कीर्तन रातन में।

'ललित'

मदिरा सवैया
दूसरा प्रयास
समीक्षा हेतु

आन बसो मनमन्दिर में तुम मात भवानि
सुनो अरजी।
द्वार खड़े हम आस लिए अब देवि तुम्हार करो मरजी।
पावन धाम महान सभी जन जावत आशिष पाकर जी।
भूल न जाउँ कभी यह धाम चहौं अब मात यही वर जी।

'ललित'

मदिरा सवैया
तीसरा प्रयास
समीक्षा हेतु

पीर पहाड समान हरे वह मात भवानि सभी जन की।
मात दहाड़ लगाकर वो हरती मति आसुर दुष्टन की।
प्यार अगाढ़ सदा करती हरती भव बाधन भक्तन की।
काल कराल रहे डरता करलो गर भक्ति उमा मन की।

'ललित'

मदिरा सवैया
पहलाप्रयास
समीक्षा हेतु

नार बनी जब पाहन से फिर कौन भरोस तुम्हार प्रभो।
नार बने यह नाव सहे कब केवट नाम कहार प्रभो।
जागत सोवत देखत हूँ सपने तव दीन सहार प्रभो।
धोवन दो यह पाँव निकालन दो रज मोहि
निहार प्रभो।

'ललित'
कृषण दीवाने/राधा गोविंद16.1.17
मदिरा सवैया
दूसरा प्रयास
समीक्षा हेतु

वानर,बालक,गोप सखा,सब संग लला बतराय रहा।
खोजत है हर रोज नया घर गोपिन को चकराय रहा।
फोड़ दिया घट मोहन ने झट माखन खा इतराय रहा।
बाल सखा सब माँगत माखन माधव है बिखराय रहा।

'ललित'

मदिरा सवैया
तीसरा प्रयास
समीक्षा हेतु
परिष्कृत
जन जागरण हेतु

कागज पेनन ले सब शायर आज नये कुछ गीत लिखो।
केवल स्याह करो मत कागज हार लिखो अरु जीत लिखो।
दोपहरी अब आँगन पाकर गर्म हवा सह प्रीत लिखो।
और नहीं कुछ सूझ रहा गणगौर पुजावन रीत लिखो।

'ललित'

मदिरा सवैया
सत्य जी के सुझाव से परि
2

आज उसी घट से जल गायब जो कल था जल से भरता।
शर्म उसी लब से अब गायब जो कल खूब हया करता।
स्वर्ण वही तन से अब गायब जो मन को सब के हरता
जोश हुआ मन से अब गायब जो कल चाँद जमीं धरता।

ललित'

मदिरा सवैया
पाँचवा प्रयास
समीक्षा हेतु
परिष्कृत

चाँद निहार नहीं थकता जब मादक चाल
चले गजनी।
साजन संग मिले सजनी अरु प्रीत समेट पगे रजनी।
पायल संग बजे कँगना जब साजन संग जगे सजनी।
पागल प्रीत नहीं छुपनी जब पैरन पायल हो वजनी।

'ललित'
मदिरा सवैया
पहला प्रयास
समीक्षा हेतु
राकेश जी के सुझाव से परिष्कृत

सावन ये मनभावन है तरु पल्लव शोभित हैं वन में।
यौवन की कलियाँ चटकी अरु प्रीत हिलोर उठी मन में।
काजल नैनन कोर छुए भँवरा चहके मन आँगन में।
बैरन बारिश की खुशबू भर आग रही मन औ' तन में।

'ललित'
मदिरा सवैया

चाल चले दिन रात जले घर में धन ताबड़ तोड़ भरे।
जोड़ करे नर तोड़ करे उसको हरि अंत निचोड़ धरे।
होड़ करे नर दौड़ करे जग में फिर वो तन छोड़ मरे।
भोर भजे अरु साँझ भजे हरि से नर जो गठ जोड़ करे

'ललित'

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