दोहे
1 अजन्मी बेटी की व्यथा
मैया तेरी कोख का,मैं इक नन्हा बीज।
बनने दे पौधा मुझे,मत तू मुझ पर खीज।।
बेटा-बेटी हैं सदा,इक डाली के फूल।
बेटी दो कुल तारती,कभी न जाना भूल।।
दुनिया मैं भी देखना,चाहूँ मैया तात।
कैसे होते फूल हैं,कैसे होते पात।।
आँगन पावन हो वहाँ,सुता रखे जहँ पाँव।
सब का मन शीतल करे,ज्यों तुलसी की छाँव।।
2 प्रकृति
शीतल सुरभित चाँदनी,धरती को सहलाय।
ज्यों अधनींदी प्रेयसी,पिय से लिपटी जाय।
बूँद बूँद बरखा गिरे,माटी खुश हो जाय।
सौंधी खुशबू भीगते,मनवा को हर्षाय।।
कारे कारे बादरा,करें गगन में शोर।
हर्षित होकर नाचते,वन उपवन में मोर।
नाच सजन का मोरनी,देखे होय निहाल।
पिया मिलन की कामना,डोरे देती डाल।।
3 पत्नी
पति के मन की हर व्यथा,लेती है जो भाँप।
उस पत्नी के सामने,रही व्यथा भी काँप।।
पत्नी के जैसा नहीं,जग में कोई मीत।
फिर भी जाँचें आग में,जग की ये ही रीत।।
'ललित'
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