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-भुजंग प्रयात छंद विधान-
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भुजंग प्रयात छंद
1. यह एक वार्णिक छन्द है।
2. सूत्र - यमाता यमाता यमाता यमाता
।ऽऽ ।ऽऽ ।ऽऽ ।ऽऽ
लघुगुरुगुरु लघुगुरुगुरु लघुगुरुगुरु लघुगुरुगुरु
3. इस छंद के प्रत्येक चरण में कुल 12 वर्ण होते हैं तथा कुल 4 चरण होते हैं और दो दो चरणों में समतुकांत मिलाने होते हैं ।
4. यह छंद वैसे तो "वीर रस" के लिए ही उपयुक्त है लेकिन इस पर चिंतनपरक सृजन भी किया जा सकता है ।
***** उदाहरण *****
भुजंग प्रयात छंद
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कहें गोपियाँ माँ दुलारा तुम्हारा।
चुरा भागता है जिया ये हमारा।
कभी ये नचाता कभी ये लजाता।
कभी बाँसुरी को सुरों से सजाता।
कभी फोड़ जाता हमारे घटों को।
कभी नाच के वो लजा दे नटों को।
करे क्या यशोदा न माने कन्हैया।
कभी डाँट दे औ' कभी ले बलैया।
**********रचनाकार*************
ललित किशोर 'ललित'
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निगाहें नहीं बोलती साँच देखी।
दिलों नहीं प्यार की आँच देखी।
निगाहें मिलाते मिलाके झुकाते।
हसीं ख्वाब देखे कभी आपने क्या?
हसीं ख्वाब टूटे कभी आपके क्या?
कभी ख्वाब के आँसुओं को चुना क्या?
कभी ख्वाब की चीख को भी सुना क्या?
ललित किशोर 'ललित'
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न जाने कहाँ प्यार खोया हुआ है?
गमों ने यहाँ बीज बोया हुआ है।
नहीं जिंदगी में सुकूँ दीखता है।
हरे घाव में से लहू चीखता है।
ललित किशोर 'ललित'
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भुजंग प्रयात
कहानी वही है नजारा वही है।
सदा हारता जो सितारा वही है।
कहाँ हारते को मिलेगा सहारा?
वही याद आए कभी जो न हारा।
ललित किशोर 'ललित'
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भुजंग प्रयात सृजन
वार्णिक छंद
122 122 122 122
122 122 122 122
चार पंक्तियाँ
दो दो पंक्तियों में सम तुकांत
11.4.16
4
भुजंग प्रयात
पधारो गजानंद आनंद दाता।
नये छंद का ज्ञान देना विधाता।
रचें छंद जो ताल दे दें सुरों को।
मिला दें धरा के विरोधी धुरों को।
ललित किशोर 'ललित'
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कभी नेक सा दीखता है कन्हाई।
कभी छोड़ता ही नहीं है कलाई।।
कभी गौ चराता बजा बाँसुरी वो।
कभी ताड़ देता बला आसुरी वो।
नहाती हुयी गोपियों को सताता।
करें रास कैसे उन्हें है बताता।।
कहे राधिका ढीठ बंसी बजा के।
मिले गोपियों से लटों को सजा के।।
ललित किशोर 'ललित'
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कभी हाथ थामा बड़े नाज से था।
वही हाथ छोडा बडी लाज से था।।
बताओ किया राम क्या था सिया ने।
जला आजमाई उसी के पिया ने।
ललित किशोर 'ललित'
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न खोलो अभी भेद सारे हमारे।
सभी भेद हैं ये सहारे तुम्हारे।
जहाँ प्यार खोजा वहीं चोट खायी ।
जहाँ प्रीत ढूँढी वहीं खोट पायी।।
ललित किशोर 'ललित'
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हवायें किसी को उड़ाती नहीं हैं।
उड़े जो उसे रोक पाती नहीं हैं।
तराने बनेंगें फसाने बनेंगें।
यही प्यार के कारखाने बनेंगें।
ललित किशोर 'ललित'
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अभी और कोई तराना न छेड़ो।
मुझे छेड़ने का बहाना न छेड़ो।
नहीं ये जमाना किसी का सगा है।
जिसे छेड़ डाला वही तो भगा है।
ललित किशोर 'ललित'
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दगाबाज इंसान सारे यहाँ जो।
बनें आज अंजान प्यारे यहाँ जो।।
उन्होंने गरीबी ठिकाने लगाई।
अमीरी बढाने दुकानें लगाई।।
ललित किशोर 'ललित'
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बुलाये बिना आप आते रहोगे।
सदा प्यार सौगात पाते रहोगे।
जमाना हमारा बुरा क्यूँ करेगा।
करेगा भला जो बुरा क्यूँ भरेगा।
ललित किशोर 'ललित'
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भुजंग प्रयात
24.1.17
कहें गोपियाँ माँ दुलारा तुम्हारा।
चुरा भागता है जिया ये हमारा।
कभी ये नचाता कभी ये लजाता।
कभी बाँसुरी को सुरों से सजाता।
कभी फोड़ जाता हमारे घटों को।
कभी नाच के वो लजा दे नटों को।
करे क्या यशोदा न माने कन्हैया।
कभी डाँट दे औ' कभी ले बलैया।
ललित किशोर 'ललित'
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पढा है कभी आपने क्या दिलों को?
दबाए हुए जो गमों की सिलों को।
पढा है कभी आपने क्या मुखों को?
हँसी में छिपाए रखें जो दुखों को।
सुने हैं कभी बेतुके से बहाने?
छुपा जो न पायें दुखों के दहाने।
मिले हैं कभी तात माता दुखी जो?
सुतों को सदा दीखते हैं सुखी जो।
कभी आह वाली सुनी साँस है क्या?
कभी डूबते की दिखी आस है क्या?
कभी आहटें मौत की हैं सुनी क्या?
बुढापा कभी देखना है गुनी क्या?
किसी का सगा ये बुढापा नहीं है।
जवानी दिखाती बुढापा यहीं है।
बुढापा भगा दे दवा वो चुनी क्या?
जवाँ मौत दे दे दवा वो सुनी क्या?
ललित किशोर 'ललित'
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हसीं चाँदनी है हसीं खूब तारे।
हसीं चाँदनी के हसीं हैं इशारे।।
जवाँ चाँद भी खूब प्यारा सजा है।
कहे चाँदनी की रजा में रजा है।।
करे चाँदनी चाँद को ये इशारा।
चलो खोजलें आसमाँ का किनारा।
हमें प्यार में लाज आती यहाँ है।
चलो दूर कोई न आता जहाँ है।।
ललित किशोर 'ललित'
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कहीं बादलों ने करी है चढाई।
कहीं आँख ही आँसुओं से भराई।
नहीं दीखता बूँद पानी किसी को।
मिले सागरों से जवानी किसी को।
ललित किशोर 'ललित'
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16
चलो आज विश्राम की बात हो ले।
कहे रात आराम से खूब सो ले।
नई ताजगी रात देती रही है।
नई भोर आगाज लेती रही है।
ललित किशोर 'ललित'
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राम लला
दुखी दानवों से धरा पे सभी थे,
प्रभो राम साकार आये तभी थे।
चले चाल ऐसी लला राम प्यारा।
अयोध्या पुरी झूम देखे नजारा।
बजें पाँव में पायलें यूँ लला के।
कहें तात माता लला हैं बला के।
लला की धमा चौकड़ी भी निराली।
महादेव की भूख नींदें चुराली।।
पधारे महादेव आँखें न खोले।
कहीं आज नैना मिला लें न भोले।
सभी भाइयों को लला ज्ञान देते।
सभी बन्धुओं को सदा मान देते।
लला नीतियों की सदा बात बोलें।
उन्हें तात माता कहें राम भोले।
ललित किशोर 'ललित'
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सुरों की जुबानी न जाए बखानी।
प्रभू राम के जन्म की वो कहानी।
नहीं शब्द कोई न स्याही कहीं है।
न औकात ही कागजों की रही है।
ललित किशोर 'ललित'
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करो शारदे माँ कृपा आप ऐसी।
लिखूँ रोज गाथा लिखें 'राज' जैसी।
सभी शब्द भावों भरे मात होवें।
पढे जो उसे दृश्य साक्षात् होवें।
ललित किशोर 'ललित'
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नहीं बूँद पानी नहीं है नहाना।
यही आलसी ढूँढता है बहाना।
हसीना लटों को सँवारे सजाए।
दबा झुर्रियाँ क्रीम बूढी लगाए।
ललित किशोर 'ललित'
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गयी रूठ पत्नी न आसाँ मनाना।
हमें भी न आए बहाने बनाना।
लगातार रोए अटैची जमाए।
चली मायके जो अकेली कमाए।
ललित किशोर 'ललित'
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पडोसी नया रोज ढूँढे बहाना।
निगाहें झुका के कहे चाय लाना।
कभी दूध वाला नहीं दूध लाए
कभी काम वाली गली में न आए।
ललित किशोर 'ललित'
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खिलाए भले रोज पिज्जा जमाना।
हमारी मिठाई नहीं भूल जाना।
हमें ख्वाब जो जन्नतों के दिखाए।
नहीं भूलना नैन रो रो सुखाए।
ललित किशोर 'ललित'
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जरा आज ऐसी कहानी सुनाना।
सिखाए हमें दुश्मनों को मनाना।
हमें देखते ही लडाई भुलाएँ।
हमें बाँह में बाँह डाले झुलाएँ।
सुनो जी जरा आप बाजार जाना।
मिठाई मिले तो किलो एक लाना।
मुहल्ले गली में सभी को खिलाएँ।
नई ओढ साडी कहीं तो दिखाएं।
ललित किशोर 'ललित'
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आँख और आँसुओं की कहानी
मिला ईश से आँसुओं का खजाना।
दुखी आँसुओं को किसी ने न जाना।
बड़ी आँसुओं की जुदा है कहानी।
सुनी आँसुओं की जुबाँ है कहानी।
कभी आँख आँसू खुशी के बहाती।
कभी आँसुओं में खुशी डूब जाती।
बहें आँख से तो दिलों को हिलाएँ।
भरें आँख में तो दिलों को मिलाएँ।
कभी आँसुओं पे हँसेगा जमाना।
कभी आँसुओं से बनेगा फसाना।
कभी आँख आँसू बहा भी न पाए।
कभी आँसुओं को सहा भी न जाए।
ललित किशोर 'ललित'
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कभी मुस्कुराना कभी यूँ लजाना।
कभी जुल्फ छूना लटों को सजाना।
कभी पायलें प्यार के गीत गाएं।
तुम्हारी अदाएं हमें मार जाएं।
ललित किशोर 'ललित'
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कहीं नाचती हैं बला की बलाएं।
कहीं चंद्रमा ही दिखाता कलाएं।
हसीं चाँदनी चाँद से नूर लाती।
वही नूर प्यारा धरा पे लुटाती।
ललित किशोर 'ललित'
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छुपा आँसुओं को कली मुस्कुरायी।
तभी कंटकों ने निगाहें चुरायी।
अरे कंटकों फूल को क्यों सताते?
तुम्हें क्यों हसीं ये नजारे न भाते?
ललित किशोर 'ललित'
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चली रौंदती आशिकों के दिलों को
हसीं नाजनीं ढूँढती मंजिलों को।
निगाहें मिलाती झुकाती उठाती।
बढी जा रही धूप में मुस्कुराती
ललित किशोर 'ललित'
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कहीं नम्बरों से चलें कार वाले।
कहीं कार ही नम्बरों के हवाले।
जहाँ चार कारें खड़ी सामने हैं।
वहाँ कायदों की घड़ी सामने है।
ललित किशोर 'ललित'
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कभी आप भी तो लटों को सँवारो।
अजी काँच में भी कभी तो निहारो।
लबों पे न यूँ लालिमा को लगाओ।
सभी भेद खोले उसे तो भगाओ।
ललित किशोर 'ललित'
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अजी शर्म ऐसी नहीं रास आए।
सँवारो लटें तो पिया पास आए।
लटों में लटें खेलती ही रहेंगी।
सदा खून पी फैलती ही रहेंगी।
ललित किशोर 'ललित'
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कहीं और जाना नहीं रास आया।
सभी छोड़ द्वारे प्रभो पास आया।
मिली है यहाँ शांति वो खास दाता।
नहीं दे सके जो कभी तात माता।
ललित किशोर 'ललित'
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निराली बड़ी काल की चाल होती।
बुढापा कहे धूल हैं आज मोती।
जवानी बिताई सुखों के सहारे।
बुढापा दिखाए दुखों के नजारे।
सभी चाहते ये बुढापा न आए।
जवानी दिवानी बुढापा दिखाए।
बुढापा किसी का भगा तो
नहीं है।
बुढापा किसी का सगा जो नहीं है।
ललित किशोर 'ललित'
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35
अरे आज बच्चा दिखे कौन सच्चा।
हमें बालकों ने दिया खूब गच्चा।
उन्हें दाल रोटी नहीं रास आई।
उन्हें रास पाश्ता व पिज्जा
पराई।
ललित किशोर 'ललित'
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जवानी व बुढापा
जवानी बड़ी काम की दे दिखाई।
कलाबाजियाँ जो हमें हैं सिखाई।
कहे चाँद को मैं जमीं पे बुला दूँ ।
हसीं वादियों में तुझे मैं सुला दूँ।
कहे प्यार आकाश का नूर हूँ मैं।
दिलों में बसा हूँ भले दूर हूँ मैं।
न मेरे सरीखा जहाँ मे मिलेगा।
जवाँ फूल ऐसा कहाँ पे खिलेगा।
हसीं जुल्फ की छाँव लेटा रहा वो।
कहें तात माँ खास बेटा रहा जो।
भुलाए रहा तात औ' मात को ही।
रखे याद फूलों भरी रात को ही।
जवानी दिखाए हसीं ख्वाब ऐसे।
ज़मीं पे टिकेंगे कहीं पाँव कैसे।
जवां जिस्म में जो इरादे जवां हैं।
सुखों का मिलेगा यहीं कारवां है।
निराली बड़ी काल की चाल होती।
बुढापा कहे धूल हैं आज मोती।
जवानी बिताई सुखों के सहारे।
बुढापा दिखाए दुखों के नजारे।
सभी चाहते ये बुढापा न आए।
जवानी दिवानी बुढापा दिखाए।
बुढापा किसी का भगा तो
नहीं है।
बुढापा किसी का सगा जो नहीं है।
ललित किशोर 'ललित'
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चली एक नारी जरा बावली सी।
जरा गौरवर्णा जरा साँवली सी।
जरा लाजवन्ती जरा कामिनी सी।
वही भोर जो लाल है दामिनी सी।
ललित किशोर 'ललित'
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घने बाल काले भले ही घने हैं
अजी रंग से बाल काले बने हैं।
हसीना चले झूमके चाल ऐसी।
फँसे आदमी भूल के चाल देसी।
ललित किशोर 'ललित'
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लगाई न लाली दिखाई न बाली।
झुका आँख तीली लबों में दबा ली।
नहाई अभी बाल गीले सुखाती।
अदाएँं यही कामिनी है दिखाती।
ललित किशोर 'ललित'
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लगी आग जी की सुरा से बुझाऊँ।
सुरा है बुरी चीज कैसे सुझाऊँ।
सुरा सुन्दरी जिन्दगी में न लाओ।
सुरा रोज पी के न जी को जलाओ।
ललित किशोर 'ललित'
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41
चखूँ बैर वो राम को जो खिलाऊँ।
खिला बैर खट्टे न आँखें मिलाऊँ
कहें राम माँ प्यार से जो खिलाओ।
लगे खूब मीठा निगाहें मिलाओ।
ललित किशोर 'ललित'
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सदा भीड़ से दूर धूनी रमाऊँ।
जपूँ नाम ऐसा प्रभू में
समाऊँ।
मुझे नेक राहें गुरू जी दिखाओ।
प्रभू को रिझाना गुरू जी सिखाओ।
ललित किशोर 'ललित'
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तुम्हें प्यार का मैं दिवाना बनाऊँ।
हसीं प्यार का वो फसाना सुनाऊँ।
नहीं प्यार को यों कभी आजमाओ।
जरा प्यार से तो कभी पास आओ।
ललित किशोर 'ललित'
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मिले जख्म जो प्यार में मैं भुलाऊँ।
तुम्हें ही सदा ख्वाब मे मैं बुलाऊँ।
चलो आज दूरी दिलों की मिटाओ।
हसीं जालिमों से मुझे क्यूँ पिटाओ।
ललित किशोर 'ललित'
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चले जो पिया साथ भार्या सदा ही।
नहीं दु:ख देखे न वो आपदा ही।
पिया के जिया की सदा बात जाने।
न अर्द्धांगिनी वो कभी घात जाने।
ललित किशोर 'ललित'
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46
हरे जख्म यारों कहाँ मैं सुखाऊँ।
नदी में न पानी जिसे मैं दिखाऊँ।
अरे पागलों आज तो जाग जाओ।
जमीं आसमाँ में न सेंधें लगाओ।
ललित किशोर 'ललित'
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शुभरात्रि
चलो नींद की गोद में सो रहेंगें।
हसीं ख्वाब के लोक में खो रहेंगें।
भरी ताजगी से नई भोर होगी।
जहाँ पे गमों की नहीं ठौर होगी।
ललित
ललित किशोर 'ललित'
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भुजंग प्रयात
बड़े प्यार से फूल था जो लगाया।
सभी कंटकों से सदा ही बचाया।
सदा प्रीत के गीत गाता रहा जो।
दिलों में उमंगें जगाता रहा जो।
हमारे लिए था हसीं ख्वाब ऐसा।
बसा प्राण में खास विश्वास जैसा।
हमें क्या गुमाँ था वही दूर होगा।
खुदा को नहीं साथ मंजूर होगा।
यही रीत संसार की सालती है।
भले आदमी को मथे डालती है।
जिया जिन्दगी साफ शीशे सरीखी।
भले मानवों में भलाई न दीखी।
करे क्या जमाना उसे रोकता है।
करे जो भलाई वहीं टोकता है।
खुदा की खुदाई नहीं रास आई।
खुशी जिन्दगी में नहीं पास आई।
जिन्हें आसमाँ औ' जमीं सौंप डाले।
किया प्यार में जिन्दगी को हवाले।
हसीं चाँद की चाँदनी के चितेरे।
बने वो हितैषी न कम्बख्त मेरे।
ललित किशोर 'ललित'
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49
दगा को दगा का न वो नाम देंगें।
करेंगें वफा जो उन्हें थाम लेंगें।
यही हुस्न की खास रंगीन बातें।
यही हुस्न की खास संगीन बातें।
ललित किशोर 'ललित'
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भुजंग प्रयात
नेता (सम्पूर्ण रचना)
चलो आज नेता गिरी धार लेवें।
मिलें वोट तो मुफ्त में कार लेवें।
नया रूप धारें बड़ा नाम होवे ।
चहेते-भतीजे न निष्काम होवें।
चलें साथ में चार आला सिपाही।
बनें खास मंत्री पढाई बिना ही।
जहाँ में कहीं भी नहीं देश ऐसा।
बिना योग्यता ही बने खूब पैसा।
नहीं जान पायें कभी भी निवासी ।
कहाँ जा रहे आज नेता प्रवासी।
नहीं देश कोई न सीमा हमारी।
उतारें जहाँ वैभवों की खुमारी।
हमें काम का काम आए न कोई।
हमें वो गरीबी दिखाए न कोई।
अजी धाक ऐसी जमाई यहाँ है।
विरोधी न जाने कमाई कहाँ है।
नयी योजना की करें घोषणाएँ।
लगाते रहें रोज ही वर्जनाएँ।
छलावा करें औ' करों को बढायें।
बढे रोध तो सैनिकों को चढायें।
सिला सूट देशी जहाँ को दिखाएँ।
कई लाख का सूट सींना सिखाएँ।
कहाँ शौच जाना सभी जान लेवें।
कहाँ से कमाना नहीं ज्ञान देवें।
कभी सात पीढी कमा कौन पाए।
वहीं साल में एक नेता कमाए।
जमीं को न छूते कभी पैर प्यारे।
बड़े साहबों को करें जो इशारे।
सभी मान दें प्रेम से ही निहारें।
कभी साथ सारे लगाएं बुहारे।
उन्हें नाटकों की कमी जो नहीं है।
टिकी नाटकों पे हमारी जमीं है।
करें शोख वादे निभायें नहीं जो।
भले मानवों को लुभायें वहीं जो।
उन्हें पाप औ' पुण्य का ज्ञान होता।
अरे काश कर्त्तव्य का भान होता।
ललित किशोर 'ललित'
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23.04.16
नया इंतिहाँ ये नई भोर लाई ।
बड़ी खूब है ये खुदा की खुदाई।
जिसे आदमी ने न देखा न जाना।
उसी ने बनाया हसीं कारखाना।
ललित किशोर 'ललित'
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उसी ने बनाए हवा आग पानी।
लुटा सा बुढापा धनी सी जवानी।
बुढापा कहे जो जवानी न माने।
लगें ठोकरें तो लगे वो ठिकाने।
ललित किशोर 'ललित'
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चले जो पिया साथ भार्या सदा ही।
नहीं दु:ख देखे न वो आपदा ही।
पिया के जिया की सदा बात जाने।
न अर्द्धांगिनी वो कभी घात जाने।
ललित किशोर 'ललित'
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भुजंग प्रयात
सम्पूर्ण गीत
आँख और आँसू
आँख और आँसुओं की कहानी
मिला ईश से आँसुओं का खजाना।
दुखी आँसुओं को किसी ने न जाना।
बड़ी आँसुओं की जुदा है कहानी।
सुनी आँसुओं की जुबाँ है कहानी।
कभी आँख आँसू खुशी के बहाती।
कभी आँसुओं में खुशी डूब जाती।
कभी आँसुओं पे हँसेगा जमाना।
दुखी आँसुओं को किसी ने न जाना।
बहें आँख से तो दिलों को हिलाएँ।
भरें आँख में तो दिलों को मिलाएँ।
कभी आँख आँसू बहा भी न पाए।
कभी आँसुओं को सहा भी न जाए।
कभी आँसुओं से बनेगा फसाना।
दुखी आँसुओं को किसी ने न जाना।
बही आँसुओं में किसी की जवानी।
हुई आँसुओं में किसी की रवानी।
कभी तो किसी के हरो आप आँसू।
कभी तो खुशी के भरो आप आँसू ।
हरो आप आँसू बनेगा तराना।
दुखी आँसुओं को किसी ने न जाना।
ललित किशोर 'ललित'
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समाप्त
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