कुण्डलिनी छंद
1 झूठी तारीफ
गुब्बारे सा फूलता,देखा मानव ढोल।
सुनता जब तारीफ के,झूठे-सच्चे बोल।।
झूठे-सच्चे बोल,कहें जो दुनिया वाले।
लगते हैंं अनमोल,झूठ के वो सब प्याले।
2 गंगा
लहर लहर को चूमती,लहर लहर लहराय।
लहर लहर में झूमती,गंगा बहती जाय।
गंगा बहती जाय ,जगत को पावन करती।
खुद मैली हो जाय,पाप सब के है हरत़ी।
3 कटार ,छुरी
चाक हृदय होता रहा,झेल वार पर वार।
तेज छुरी से भी बुरी,उसकी नैन कटार।
उसकी नैन कटार,बला की है कजरारी।
हौले से बल खाय,चले ज्यूँ दिल पर आरी।
4 लट,जुल्फ
उलझी लट सुलझा रहा,बैठ जुल्फ की छाँव।
उलझ लटों में जब गया,भूल गया निज गाँव।
भूल गया निज गाँव,सखा भाई वो सारे।
मात-पिता-सुत-भ्रात,पत्नी सब ही बिसारे।
5 मीठी बोली
कड़वी बोली से जहाँ,शहद नहीं बिक पाय।
मीठी बोली से वहाँ,मिर्ची भी बिक जाय।।
मिर्ची भी बिक जाय,मधुर वाणी जो बोले।
सबका दिल हर्षाय,मीत वो हौले हौले।।
'ललित'
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