11 लला और माया (भाग-4) साझा काव्य संग्रह

लला और माया(भाग-4)

हमें आज तेरा सहारा मिलेगा,यही सोचते थे सवेरा दिखेगा।
करी आपने जो नहीं वो नवाई,कराते सभी हैं सुतों को पढ़ाई।
ममा आपके एहसाँ मानता हूँ,पढ़ाया लिखाया मुझे जानता हूँ।
यही चाहता हूँ बनूँ मैं सहारा,हुआ हूँ ममा मैं बड़ा बेसहारा।
न भूलो कहाँ आज जाये जमाना,बड़ी मुश्किलों से भरा है कमाना।
मुझे कार ले बंगला भी बनाना,बड़ा काम भारी पपा ने न जाना।
ममा आज जो भी बड़ी कार लेता,जमाना उसे ही बड़ा मान देता।
ममा सोचती है लला और माया,इन्होंने जमाना नया है दिखाया।
पपा का न पूछो हुआ हाल था जो,पराया हुआ वो सगा लाल था जो।
जिसे पालने में खपाई जवानी,उसी लाल ने आज दे दी रवानी।
ममा रो रही आज देती दुहाई,रहे मौज आनंद में तू सदाई।
कभी जिन्दगी में न देखे गमी तू,बना आज माया सखा है डमी तू।
पपा ने लला की ममा को पुकारा,लुटा आज संसार सारा हमारा।
लला ये न होता लली काश होती,अजी आस यों तो लगाई न होती।
लली प्यार दोनों जहाँ का जताती,हमारी कभी बात खाली न जाती।
किसी को न देना प्रभू लाल ऐसा,करे जो बुरा हाल कंगाल जैसा।

                 समाप्त

'ललित'

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