10. लला और माया (भाग-3) साझा काव्य संग्रह

लला और माया (भाग-3)

वही ज़िन्दगी है वही प्यार मेरा,उसी से शुरू होय संसार मेरा।
किया है उसी से ममा एक वादा,जिऊँगा उसी संग है ये इरादा।
ममा और पापा हुए यूँ पराये,लला की खुशी देख फेरे कराये।
हनीमून से लौट के आज आये,ममा से निगाहें रहे वो चुराये।
निगाहें झुकाये लला बोल जाता,ममा आपका ये घराना न भाता।
बहू भी न चाहे यहाँ और आना,हमें आज ही हैदराबाद जाना।
ममा और पापा नहीं रोक पाये,रहे सोचते जो कहा भी न जाये।
रवाना हुए यों लला और माया,सभी ख्वाब तोड़े लला ने हराया।
मनौती मनाई ममा ने जहाँ थी,उसी देवरे आज बैठी वहाँ थी।
मुझे देव क्यों पूत ऐसा दिया था,भुला आज पापा ममा को गया था।
लला आज ऐसा दिखाता समा है,जने क्यों सुतों को जहाँ में ममा है।
बताओ प्रभू ये ममा और पापा,गुजारें कहाँ और कैसे बुढ़ापा।
मिला के तभी देवता से निगाहें,पुकारे ममा आज वीरान राहें।
लला ने भरी आज संताप से मैं,करूँ कामना ये प्रभू आप से मैं।
लला को प्रभू नेक राहें दिखाना,ममा को न भूले कभी ये सिखाना।
लला से बड़ी आस दाता लगाई,बड़ी भूल की आस क्यों थी जगाई।
प्रभू ने सुनी ये ममा की कहानी,लला भूल पाया न यादें पुरानी।
लला दौड़ माता पिता पास आया,ददा ने गले से लला को लगाया।
ममा ने कहा यूँ तुझे देख पाला,गले से उतारा न कोई निवाला।
पपा ने उधारा लिया तू पढ़ाया,बड़ी मुश्किलों से उधारा चुकाया।
'ललित'                                क्रमश:

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