13 नजरें(कुकुभ छंद) भाग -1 साझा काव्य संग्रह

कुकुभ छंद

नज़रें(भाग-1)
1
नज़रों से वो करे इशारे,नज़रों पर जो मरता है।
नज़रें उसकी कातिल जैसी,नज़रों से दिल हरता है।
नज़रों का सब खेला यारों,नज़रों में प्रिय बसता है।
प्रिय के दिल में स जाने का,नज़रों से ही रस्ता है।
2
अपनों के प्रति ममता-आदर,नज़रें ही तो दिखलाएं।
नज़रें अपनी कभी न बदलो,गुरुजन ये ही सिखलाएं।
नज़रों से सम्मान सभी का,कर सकते हैं हम भारी।
नज़रों से अपमान किया तो,दिल पर चलती बस आरी।
3
कुछ लोगों की घातक नज़रें,बच्चों को हैं लग जाती।
नज़र उतारे मैया उसकी,नींदों से जग जग जाती।
काला टीका लगा उसे वो,खूब बलैयाँ फिर लेती।
नज़र लगे न लाल को मेरे,लाख दुआएँ फिर देती।
4
मनख-मनख की नज़रों में भी,फर्क बड़ा ही दिखता है।
नज़र आसमाँ में रख कोई,पैर ज़मीं पर रखता है।
नज़र रखे धरती पर कोई,करनी ऊँची करता है।
पर उपकार करे वह जग में,झोली सबकी भरता है।
5
काम कभी ऐसा मत करना,नज़र झुकानी पड़ जाए।
एक बार नज़रों से गिरकर,कभी नहीं फिर उठ पाए।
नज़र रखो अपनी करनी पर,करनी ऐसी कर जाओ।
याद करे दुनिया वर्षों तक,नज़र मोड़ जब मर जाओ।

'ललित'                                 क्रमश:

No comments:

Post a Comment