18 भुजंग प्रयाति छंद साझा काव्य संग्रह

भुजंग प्रयाति छंद

1  कान्हा

कभी नेक सा दीखता है कन्हाई।कभी छोड़ता ही नहीं है कलाई।।
कभी गौ चराता बजा बाँसुरी वो।कभी ताड़ देता बला आसुरी वो।

नहाती हुयी गोपियों को सताता।करें रास कैसे उन्हें है बताता।।
कहे राधिका ढीठ बंसी बजा के।मिले गोपियों से लटों को सजा के।।

कहें गोपियाँ माँ दुलारा तुम्हारा।चुरा भागता है जिया ले हमारा।
कभी ये नचाता कभी ये लजाता।कभी बाँसुरी को सुरों से सजाता।

कभी फोड़ जाता हमारे घटों को।कभी नाच के वो लजा दे नटों को।
करे क्या यशोदा न माने कन्हैया।कभी डाँट दे औ' कभी ले बलैया।

2 कुछ सवाल

पढा है कभी आपने क्या दिलों को?दबाए हुए जो गमों की सिलों को।
पढा है कभी आपने क्या मुखों को?हँसी में छिपाए रखें जो दुखों को।

सुने हैं कभी बेतुके से बहाने?छुपा जो न पायें दुखों के दहाने।
मिले हैं कभी तात माता दुखी जो?सुतों को सदा दीखते हैं सुखी जो।

कभी आह वाली सुनी साँस है क्या?कभी डूबते की दिखी आस है क्या?
कभी आहटें मौत की हैं सुनी क्या?बुढापा कभी देखना है गुनी क्या?

किसी का सगा ये बुढापा नहीं है।जवानी दिखाती बुढापा यहीं है।
बुढापा भगा दे दवा वो चुनी क्या?जवाँ मौत दे दे दवा वो सुनी क्या?

'ललित'

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