2 ताटंक छंद साझा काव्य संग्रह

ताटंक छंद
1
श्याम तुम्हारे नयनों का ये,कजरा मुझे सताता है।
कान्हा की आँखों में रहता,कहकर ये इतराता है।
आज तुम्हीं सच कहना कान्हा,देखो झूँठ नहीं बोलो।
गर मैं हूँ कजरे से प्यारी,अपने नयन अभी धोलो।
राधा तू नयनों में बसती,दिल ये तेरा दीवाना।
तेरे सिवा किसी को मैंने,अपना कभी नहीं माना।
चाहे तो ये दिल मैं रख दूँ ,कदमों में तेरे राधा।
जिससे होता पूरा होता,प्यार नहीं होता आधा।
2
सबसे सुंदर है इस जग में,राधा-कान्हा की जोड़ी।
जिसने हृदय बसा ली ये छवि,प्रीत वही समझा थोड़ी।
चौंसठ कला निपुण हैं कान्हा,शक्ति स्वरूपा हैं राधा।
राधे-राधे नाम जपो तो,मिट जाएगी भव बाधा।
3
पत्थर पत्थर में भी देखो,कितना अन्तर होता है।
इक मूरत बन पूजा जाता,इक नाली में रोता है।
इक पर बैठी शोख हसीना,इक को लहरें ठोकें हैं।
इस किस्मत का खेल निराला,कर्मों ने सब झोंके हैं।
कर्म बने सत्कर्म तुम्हारा,हर पल ऐसे जी जाओ।
दीन दुखी की सेवा कर लो,उनके सब गम पी जाओ।
गौमाता की रक्षा कर लो,गौसेवा में मेवा है।
अपनी खातिर जिये मरे तो,कोई नाम न लेवा है।
'ललित'

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