17 मनहरण घनाक्षरी साझा काव्य संग्रह

मनहरण घनाक्षरी

1 बेटी जन्म

सूने सूने अँगना में,मेरी प्यारी बगिया में।
आई क नन्ही परी,घर महका दिया।

बोलती है तुतलाती,चलती है इठलाती।
फुदक-फुदक आती,पग लहका दिया।

कूकती है कोयल सी,झूमती है बदरा सी।
चुलबुली चिड़िया सी,मन चहका दिया।

चमके ज्यूँ चँदनियाँ,पहने है पैंजनियाँ।
पराई हूँ यही बोल,मन दहका दिया।

2  अजन्मी बेटी की अरज

बेटी

मैया मैं दुलारी तेरी,सुनले अरज मेरी।
जग में आने दे मुझे,कभी न सताऊँगी।

कलेजे का टुकड़ा हूँ,तेरा ही तो मुखड़ा हूँ
घर में आने दे मुझे,सदा मुसकाऊँगी।

तू जो मुख मोड़ लेगी,मेरा दम तोड़ देगी।
समझ न पाऊँ तुझे,कैसे भूल पाऊँगी।

तू भी जब आई होगी,तेरी कोई माई होगी।
जैसे पाल लिया तुझे,मैं भी पल जाऊँगी।

'ललित'

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