गीतिका छंद
1
राकेश जी को समर्पित
चाँद का वो 'राज' जब से,जिन्दगी में आ गया।
प्यार की सरगम बना वो,लेखनी पे छा गया।
'राज' की नजरे करम से,छंद लेखन भा गया।
हर तरफ छाई बहारें,चाँद भी शरमा गया।
2
आगये तेरी शरण में,श्याम हम जग छोड़ के।
प्रेम की ले लो परीक्षा,हम खड़े कर जोड़ के।
आपने गीता सुनाकर,ज्ञान अनुपम दे दिया।
देह नश्वर है जगत में,जान देही ने लिया।
3
बेतुका दस्तूर जग का,आदमी से है बड़ा।
प्यार में दो दिल मिले वो,राह रोके है खड़ा।
प्रेम की गहराइयाँ हैं,कौम को खलती यहाँ।
मौत की परछाइयों में,प्रीत है पलती यहाँ।
4
पाँचवाँ प्रयास
राकेश जी के सुझाव से परि.
गूँजती हैं जिन दिलों में,प्रीत की शहनाइयाँ।
छू उन्हें हरदम गुजरतीं,प्यार की पुरवाइयाँ।
चाँदनी शीतल बनी है,चाँद की ही प्रीत से।
ये जहाँ भी चल रहा है,प्रेम की ही रीत से।
ललित
गीतिका
1 प्रयास
वो चली सुंदर कली इक,नैन कजरारे लिए।
गाल पे लाली लगाए,बाल सब कारे किए।
कान में झुमका लटकता,माथ बिंदी सोहती।
झूमती सी चल रही गजगामिनी मन मोहती।
ललित
गीतिका
2 प्रयास
राकेश जी के सुझाव से परिष्कृत
कृष्ण दीवाने 11.1.17
भाल पर चंदन तिलक है,हाथ माला फूल की।
ध्यान गिरिधर का करे वो,आस चरणन धूल की।
सिर ढका आँचल ढका है,आँख मधुरस घोलती।
रूप मीरा का धरे वो,श्याम सम्मुख डोलती।
ललित
गीतिका
तीसरा प्रयास
राकेश जी के सुझाव से परिष्कृत
चूड़ियाँ चुप होगयी हैं,पायलें खामोश हैं।
हाथ में गजरा बँधा है,कामिनी मदहोश है।
आज उससे था मिलन जो,प्यार से दिल ले गया।
प्रीत में पागल हुआ वो,दर्द दिल का दे गया।
'ललित'
[26/04 14:28] Rakesh Raj: तीसरी पंक्ति ऐसे करें ललित जी..आज उससे था मिलन जो, प्यार से दिल ले गया। ऐसे करने से गेटअप आएगा पंक्ति में...शेष बहुत सुंदर...👍🏻👍🏻👍🏻💐💐🌾🙏🏻🙏🏻🙏🏻
[26/04 14:31] Rakesh Raj: बेहतरीन परिष्कार...ललित जी..सच मानिए शब्द और भाव बहुत बेहतरीन हो जाते हैं आपकी रचना में....👍🏻👍🏻💐💐👍🏻👍🏻🙏🏻 हृदय से बधाई आपकी निष्ठा और समर्पण के लिए....🙏🏻🙏🏻💐💐🙏🏻🙏🏻
गीतिका
चौथा प्रयास
राधिका की पायलें औ',श्याम की बंशी बजें।
गोप-ग्वाले झूमते सब,गोपियों के सुर सजें।
रास राधा-कृष्ण का ये,गोपियाँ थिरकें सभी।
रासलीला ये मनोहर,देव भी निरखें सभी।
ललित
गीतिका
5 वाँ प्रयास
प्रीत की खुशबू हवा में,सूँघता मेरा जिया।
है सहेजा बिंदिया में,प्यार तेरा ओ पिया।
पाँव पायल बज उठे जब,आहटें तेरी सुने।
गीत गाती है पवन जब,चाहतें मेरी सुने।
'ललित'
27.4.16
1
समीक्षा हेतु
राकेश जी के सुझाव से परिष्कृत
क्या हुआ जो आज अपने,दूर तुझ से हो गए?
भूल जा वो ख्वाब सारे,बुल बुले से खो गए।
है बसा परमातमा जो,आज तेरी देह में।
ले शरण बस एक उसकी,खो उसी के नेह में।
ललित
2
समीक्षा हेतु
माँ पिता ने जो किया वो,मात्र उनका फर्ज था।
जो दिया संतान को वो,पूर्व का ही कर्ज था।
आज मैं ऊपर उठा हूँ,बुद्धि बल औ' ज्ञान से।
जी रहा हूँ आज सुख से,काम कर के ध्यान से।
3
समीक्षा हेतु
😔😔😔😔😔😔😔
आसमानों में जवानी,उड़ रही है शान से।
वृद्ध जन की जिन्दगी नित, रो रही अपमान से।
ऐ खुदा जालिम बुढापा,आदमी को क्यूँ दिया?
बागबाँ तरसे चमन को,बोल ऐसा क्यूँ किया?
क्या हुआ जो आज अपने,दूर तुझ से हो गए?
भूल जा वो ख्वाब सारे,बुल बुले से खो गए।
है बसा परमातमा जो,आज तेरी देह में।
ले शरण बस एक उसकी,खो उसी के नेह में।
ललित
'ललित'
4
समीक्षा हेतु
अब चिरागों को उजाले,खुद बुझाने आ गए।
देश के जो रहनुमा हैं,वो कमाने आ गए।
देश में पानी नहीं वो,जानकर अंजान हैं।
हैलिको में उड़ रहे वो,खास जो इंसान हैं।
'ललित'
5
गहन समीक्षा हेतु
मोह की माया पुरी ये,लोभ की बाजीगरी।
काम,मद औ'क्रोध की ये,आसुरी कारीगरी।
देह विष की बेल है ये,देह देही हैं अलग।
आत्म सब में एक वो ही,दीखते ही हैं अलग।
'ललित'
28.04.16
1
समीक्षा हेतु
बालकों को ज्ञान देना,आप माता शारदे।
बुद्धि,बल औ' तेज दे माँ,इक यही उपहार दे।
राह में कंटक बिछे जो,चुभ न पाएँ वो इन्हें।
पुष्प ये महकें सदा जो,आप सौरभ दो इन्हें।
'ललित'
2 समीक्षा हेतु
खेलने दो आज मुझ को,दोसतों के साथ माँ।
पाठ का मत बोझ डालो,आज मेरे माथ माँ।
मैं पढूँगा दिल लगा के,कर जरा विश्वास माँ।
खेल भी लेकिन दिलाता,कामयाबी खास माँ।
'ललित'
प्याज छुप छुप देखता था,नाच भिण्डी का सदा।
और भिण्डी जानती थी,नाचने का फायदा।
खूब खाते लोग भरवाँ,भिण्डियाँ थे चाव से ।
प्याज को पूछे न कोई,कोड़ियों के भाव से।
प्याज ने भी राज ऐसा,बागबाँ से पा लिया।
आदमी ने सब्जियों में,प्याज का तड़का दिया।
पूछती भिण्डी बता दो,बात क्या है राज की।
प्याज बोला जान मेरी,तू नहीं कुछ काज की।
'ललित'
गीतिका संदेश
जो उड़ाते हैं लबों से,खूब कश लेकर धुआँ।
आज उनकी जिन्दगी ही,बन गई है इक जुआँ।
पी रहे सिगरेट, दारू,और गुटका खा लिया।
मौत का मानो उन्होंने,टिकट ही कटवा लिया।
'ललित'
गीतिका छंद
2
समीक्षा हेतु
आपसे करके वफा हम,ख्वाब में यूँ खो गये।
आप की हर बेवफाई,ओढ कर यूँ सोगये।
प्रीत की हर रीत हम से,आप का पूछे पता।
काश इतना ही बता दो,क्या हुई हमसे खता।
'ललित'
गीतिका छंद
3
समीक्षा हेतु
क्या मिला तुम को बहारों,प्यार मेरा छीन कर?
ले गया दामन से खुशियाँ,यार मेरा बीन कर।
जो वफा का था समन्दर,बेवफा वो हो गया।
प्यार की सारी मलाई,चाटकर वो खो
गया।
'ललित'
गीतिका छंद
4
समीक्षा हेतु
बेवफा
वो परी जिसके लिए तुम, भूल बैठे हो हमें।
जन्नतों की हूर होगी,कुछ न समझे जो हमें।
मार धक्का छोड देगी,जब तुम्हें जाने जहाँ।
याद आएँगीं हमारी,तब तुम्हें बाहें वहाँ।
'ललित'
5
बेवफा कुछ इस तरह के,आप देखोगे यहाँ।
भूल अपने साजना को,ताकते इत उत वहाँ।
बेवफाई सौ टका तो,ये नहीं कहलायगी।
पर वफा भी सौ टका तो,ये कहाँ बन पायगी।
'ललित'
गीतिका छंद
6
समीक्षा हेतु
बेवफा सनम
प्यार की खुशबू हवा में,प्रेम रस है घोलती।
प्रीत की प्यासी कुमारी,आज वन वन डोलती।
बेवफा दिल ले गया वो,रो रही है साँवली।
याद उसकी अब जिया में,पालती है बावली।
'ललित'
गीतिका
कल के सारे दुखी प्राणियों
के लिए
बेवफा मत बोल उसको,प्यार जो मजबूर है।
पूछ उससे किसलिए वो,
आज तुझ से दूर है।
बाँट ले उसके गमों को,
और खुशियाँ दे उसे।
भूल जा सब गलतियों को,
बाँह में भर ले उसे।
'ललित'
गीतिका
1
राकेश जी के सुझाव से परिष्कृत
केवट
आप करते हो सभी को,पार भव से राम जी।
पार गंगा से कराना,खास मेरा काम जी।
काम है ये एक जैसा,भक्तवत्सल जान लो।
पार कर देना मुझे भी,अर्ज इतनी मान लो।
'ललित'
गीतिका
2
राकेश जी के सुझाव से परिष्कृत
शबरी
रोज वो झाड़ू लगाती,पथ बुहारे प्यार से।
राम आएँगें कभी तो,दीन की मनुहार से।
बेर वन से तोड़ लाती,राम के आहार को।
त्याग सकते राम कब हैं,भक्त के उपहार को।
गीतिका छंद
3
समीक्षा हेतु
क्या करोगे आप मेरे,राज सारे जानकर।
तोड़ डाला आज मैं ने,दिल तुम्हारा मानकर।
प्रीत जो दिल में बसी थी,पीर देती थी सदा।
दिल निचोड़ा और मैंने,प्रीत को दे दी विदा।
ललित
गीतिका छंद
4
समीक्षा हेतु
वो समुन्दर में लगाती,थी बहुत सी डुबकियाँ।
और रेती में लगाती,थी बहुत सी
गुड़कियाँ।
रेत जो लिपटे वदन पर,भाग पुल पर छोड़ती।
राम की सेवा करन को,वो गिलहरी
दौड़ती।
गीतिका छंद
1
समीक्षा हेतु
गोपियाँ खुद छेड़ देतीं,राह चलते श्याम को।
देखने को बावरी उस,साँवरे सुखधाम को।
शीश पे मटकी रखे वो,कामना मन में करें।
श्याम मटकी फोड़ दे तो,पाप जीवन से टरें।
'ललित'
गीतिका छंद
2
समीक्षा हेतु
श्याम सुन्दर नाचता है,माथ कालिय नाग के।
और छेड़े बाँसुरी पर,सुर अनोखे राग के।
नाग के सिर पर चढा वो,मुस्कुराता शान से।
जीत लेता जो दिलों को,बाँसुरी की तान से।
'ललित'
गीतिका छंद
साँस लेना इस जमीं पर,आज दूभर होगया।
आदमी अपने बनाए,जाल में फँस जो गया।
वाहनों की रेल लेकर,चाँद पर था जा रहा।
अॉड ईवन में फँसा अब,आप धक्के खा रहा।
दे दनादन खाद डाली,खेत बंजर कर दिए।
हर कदम नल कूप खोदे,सून मंजर कर दिए।
काट डाले पेड़ जंगल,रास्तों के वास्ते।
बंद कर डाले खुदी ने,जन्नतों के रास्ते।
दिख रहा है आज ट्रेलर,कल फिलम भी देखना।
आदमी का आदमी पर,हर सितम भी देखना।
जागने का एक मौका,आज तेरे पास है।
सोच कल की पीढियों को,आस तुझसे खास है।
'ललित'