गीतिका छंद सृजन 25.4.16 से

गीतिका छंद
1

राकेश जी को समर्पित

चाँद का वो 'राज' जब से,जिन्दगी में आ गया।
प्यार की सरगम बना वो,लेखनी पे छा गया।
'राज' की नजरे करम से,छंद लेखन भा गया।
हर तरफ छाई बहारें,चाँद भी शरमा गया।
2
आगये तेरी शरण में,श्याम हम जग छोड़ के।
प्रेम की ले लो परीक्षा,हम खड़े कर जोड़ के।
आपने गीता सुनाकर,ज्ञान अनुपम दे दिया।
देह नश्वर है जगत में,जान देही ने लिया।
3
बेतुका दस्तूर जग का,आदमी से है बड़ा।
प्यार में दो दिल मिले वो,राह रोके है खड़ा।
प्रेम की गहराइयाँ हैं,कौम को खलती  यहाँ।
मौत की परछाइयों में,प्रीत है पलती यहाँ।
4
पाँचवाँ प्रयास
राकेश जी के सुझाव से परि.

गूँजती हैं जिन दिलों में,प्रीत की शहनाइयाँ।
छू उन्हें हरदम गुजरतीं,प्यार की पुरवाइयाँ।
चाँदनी शीतल बनी है,चाँद की ही प्रीत से।
ये जहाँ भी चल रहा है,प्रेम की ही रीत से।

ललित

गीतिका
1 प्रयास

वो चली सुंदर कली इक,नैन कजरारे लिए।
गाल पे लाली लगाए,बाल सब कारे किए।
कान में झुमका लटकता,माथ बिंदी सोहती।
झूमती सी चल रही गजगामिनी मन मोहती।
ललित

गीतिका
2 प्रयास
राकेश जी के सुझाव से परिष्कृत
कृष्ण दीवाने 11.1.17
भाल पर चंदन तिलक है,हाथ माला फूल  की।
ध्यान गिरिधर का करे वो,आस चरणन धूल की।
सिर ढका आँचल ढका है,आँख मधुरस घोलती।
रूप मीरा का धरे वो,श्याम सम्मुख डोलती।

ललित

गीतिका
तीसरा प्रयास
राकेश जी के सुझाव से परिष्कृत

चूड़ियाँ चुप होगयी हैं,पायलें खामोश हैं।
हाथ में गजरा बँधा है,कामिनी मदहोश है।
आज उससे था मिलन जो,प्यार से दिल ले गया।
प्रीत में पागल हुआ वो,दर्द दिल का दे गया।

'ललित'

[26/04 14:28] Rakesh Raj: तीसरी पंक्ति ऐसे करें ललित जी..आज उससे था मिलन जो, प्यार से दिल ले गया। ऐसे करने से गेटअप आएगा पंक्ति में...शेष बहुत सुंदर...👍🏻👍🏻👍🏻💐💐🌾🙏🏻🙏🏻🙏🏻
[26/04 14:31] Rakesh Raj: बेहतरीन परिष्कार...ललित जी..सच मानिए शब्द और भाव बहुत बेहतरीन हो जाते हैं आपकी रचना में....👍🏻👍🏻💐💐👍🏻👍🏻🙏🏻 हृदय से बधाई आपकी निष्ठा और समर्पण के लिए....🙏🏻🙏🏻💐💐🙏🏻🙏🏻

गीतिका
चौथा प्रयास

राधिका की पायलें औ',श्याम की बंशी बजें।
गोप-ग्वाले झूमते सब,गोपियों के सुर सजें।
रास राधा-कृष्ण का ये,गोपियाँ थिरकें सभी।
रासलीला ये मनोहर,देव भी निरखें सभी।

ललित

गीतिका
5 वाँ प्रयास

प्रीत की खुशबू हवा में,सूँघता मेरा जिया।
है सहेजा बिंदिया में,प्यार तेरा ओ पिया।
पाँव पायल बज उठे जब,आहटें तेरी सुने।
गीत गाती है पवन जब,चाहतें मेरी सुने।

'ललित'

27.4.16
1
समीक्षा हेतु
राकेश जी के सुझाव से परिष्कृत

क्या हुआ जो आज अपने,दूर तुझ से हो गए?
भूल जा वो ख्वाब सारे,बुल बुले से खो गए।
है बसा परमातमा जो,आज तेरी देह में।
ले शरण बस एक उसकी,खो उसी के नेह में।

ललित

2
समीक्षा हेतु

माँ पिता ने जो किया वो,मात्र उनका फर्ज था।
जो दिया संतान को वो,पूर्व का ही कर्ज था।
आज मैं ऊपर उठा हूँ,बुद्धि बल औ' ज्ञान से।
जी रहा हूँ आज सुख से,काम कर के ध्यान से।

3
समीक्षा हेतु
😔😔😔😔😔😔😔
आसमानों में जवानी,उड़ रही है शान से।
वृद्ध जन की जिन्दगी नित, रो रही अपमान से।
ऐ खुदा जालिम बुढापा,आदमी को क्यूँ दिया?
बागबाँ तरसे चमन को,बोल ऐसा क्यूँ किया?
क्या हुआ जो आज अपने,दूर तुझ से हो गए?
भूल जा वो ख्वाब सारे,बुल बुले से खो गए।
है बसा परमातमा जो,आज तेरी देह में।
ले शरण बस एक उसकी,खो उसी के नेह में।

ललित

'ललित'

4
समीक्षा हेतु

अब चिरागों को उजाले,खुद बुझाने आ गए।
देश के जो रहनुमा हैं,वो कमाने आ गए।
देश में पानी नहीं वो,जानकर अंजान हैं।
हैलिको में उड़ रहे वो,खास जो इंसान हैं।

'ललित'
5
गहन समीक्षा हेतु

मोह की माया पुरी ये,लोभ की बाजीगरी।
काम,मद औ'क्रोध की ये,आसुरी कारीगरी।
देह विष की बेल है ये,देह देही हैं अलग।
आत्म सब में एक वो ही,दीखते ही हैं अलग।

'ललित'

28.04.16
1
समीक्षा हेतु

बालकों को ज्ञान देना,आप माता शारदे।
बुद्धि,बल औ' तेज दे माँ,इक यही उपहार दे।
राह में कंटक बिछे जो,चुभ न पाएँ वो इन्हें।
पुष्प ये महकें सदा जो,आप सौरभ दो इन्हें।

'ललित'

2 समीक्षा हेतु

खेलने दो आज मुझ को,दोसतों के साथ माँ।
पाठ का मत बोझ डालो,आज मेरे माथ माँ।
मैं पढूँगा दिल लगा के,कर जरा विश्वास माँ।
खेल भी लेकिन दिलाता,कामयाबी खास माँ।

'ललित'

प्याज छुप छुप देखता था,नाच भिण्डी का सदा।
और भिण्डी जानती थी,नाचने का फायदा।
खूब खाते लोग भरवाँ,भिण्डियाँ थे चाव से ।
प्याज को पूछे न कोई,कोड़ियों के भाव से।
प्याज ने भी राज ऐसा,बागबाँ से पा लिया।
आदमी ने सब्जियों में,प्याज का तड़का दिया।
पूछती भिण्डी बता दो,बात क्या है राज की।
प्याज बोला जान मेरी,तू नहीं कुछ काज की।

'ललित'

गीतिका संदेश

जो उड़ाते हैं लबों से,खूब कश लेकर धुआँ।
आज उनकी जिन्दगी ही,बन गई है इक जुआँ।
पी रहे सिगरेट, दारू,और गुटका खा लिया।
मौत का मानो उन्होंने,टिकट ही कटवा लिया।

'ललित'

गीतिका छंद
2
समीक्षा हेतु

आपसे करके फा हम,ख्वाब में यूँ खो गये।
आप की हर बेवफाई,ओढ कर यूँ सोगये।
प्रीत की हर रीत हम से,आप का पूछे पता।
काश इतना ही बता दो,क्या हुई हमसे खता।

'ललित'

गीतिका छंद
3
समीक्षा हेतु

क्या मिला तुम को बहारों,प्यार मेरा छीन कर?
ले गया दामन से खुशियाँ,यार मेरा बीन कर।
जो वफा का था समन्दर,बेवफा वो हो गया।
प्यार की सारी मलाई,चाटकर वो खो
गया।
'ललित'

गीतिका छंद
4
समीक्षा हेतु

बेवफा

वो परी जिसके लिए तुम, भूल बैठे हो हमें।
जन्नतों की हूर होगी,कुछ न समझे जो हमें।
मार धक्का छोड देगी,जब तुम्हें जाने जहाँ।
याद आएँगीं हमारी,तब तुम्हें बाहें वहाँ।

'ललित'

5

बेवफा कुछ इस तरह के,आप देखोगे यहाँ।
भूल अपने साजना को,ताकते इत उत वहाँ।
बेवफाई सौ टका तो,ये नहीं कहलायगी।
पर वफा भी सौ टका तो,ये कहाँ बन पायगी।

'ललित'

गीतिका छंद
6
समीक्षा हेतु
बेवफा सनम

प्यार की खुशबू हवा में,प्रेम रस है घोलती।
प्रीत की प्यासी कुमारी,आज वन वन डोलती।
बेवफा दिल ले गया वो,रो रही है साँवली।
याद उसकी अब जिया में,पालती है बावली।

'ललित'

गीतिका

कल के सारे दुखी प्राणियों
के लिए

बेवफा मत बोल उसको,प्यार जो मजबूर है।
पूछ उससे किसलिए वो,
आज तुझ से दूर है।
बाँट ले उसके गमों को,
और खुशियाँ दे उसे।
भूल जा सब गलतियों को,
बाँह में भर ले उसे।

'ललित'

गीतिका
1
राकेश जी के सुझाव से परिष्कृत
केवट

आप करते हो सभी को,पार भव से राम जी।
पार गंगा से कराना,खास मेरा काम जी।
काम है ये एक जैसा,भक्तवत्सल जान लो।
पार कर देना मुझे भी,अर्ज इतनी मान लो।

'ललित'

गीतिका
2
राकेश जी के सुझाव से परिष्कृत

शबरी

रोज वो झाड़ू लगाती,पथ बुहारे प्यार से।
राम आएँगें कभी तो,दीन की मनुहार से।
बेर वन से तोड़ लाती,राम के आहार को।
त्याग सकते राम कब हैं,भक्त के उपहार को।

गीतिका छंद
3
समीक्षा हेतु

क्या करोगे आप मेरे,राज सारे जानकर।
तोड़ डाला आज मैं ने,दिल तुम्हारा मानकर।
प्रीत जो दिल में बसी थी,पीर देती थी सदा।
दिल निचोड़ा और मैंने,प्रीत को दे दी विदा।

ललित

गीतिका छंद
4
समीक्षा हेतु

वो समुन्दर में लगाती,थी बहुत सी डुबकियाँ।
और रेती में लगाती,थी बहुत सी
गुड़कियाँ।
रेत जो लिपटे वदन पर,भाग पुल पर छोड़ती।
राम की सेवा करन को,वो गिलहरी
दौड़ती।

गीतिका छंद
1
समीक्षा हेतु

गोपियाँ खुद छेड़ देतीं,राह चलते श्याम को।
देखने को बावरी उस,साँवरे सुखधाम को।
शीश पे मटकी रखे वो,कामना मन में करें।
श्याम मटकी फोड़ दे तो,पाप जीवन से टरें।

'ललित'

गीतिका छंद
2
समीक्षा हेतु

श्याम सुन्दर नाचता है,माथ कालिय नाग के।
और छेड़े बाँसुरी पर,सुर अनोखे राग के।
नाग के सिर पर चढा वो,मुस्कुराता शान से।
जीत लेता जो दिलों को,बाँसुरी की तान से।
'ललित'

गीतिका छंद

साँस लेना इस जमीं पर,आज दूभर होगया।
आदमी अपने बनाए,जाल में फँस जो गया।
वाहनों की रेल लेकर,चाँद पर था जा रहा।
अॉड ईवन में फँसा अब,आप धक्के खा रहा।

दे दनादन खाद डाली,खेत बंजर कर दिए।
हर कदम नल कूप खोदे,सून मंजर कर दिए।
काट डाले पेड़ जंगल,रास्तों के वास्ते।
बंद कर डाले खुदी ने,जन्नतों के रास्ते।

दिख रहा है आज ट्रेलर,कल फिलम भी देखना।
आदमी का आदमी पर,हर सितम भी देखना।
जागने का एक मौका,आज तेरे पास है।
सोच कल की पीढियों को,आस तुझसे खास है।

'ललित'

भुजंग प्रयात सृजन 2

भुजंग प्रयात
23.4.16
1
कहानी बची है न पन्ना बचा है।
न ही देश में आज गन्ना बचा है।
न पानी धरा पे कहीं दीखता है।
धुआँ आसमाँ में यहीं दीखता है।
2
प्रभू द्वार कैसे मिलेगा ठिकाना।
न सत्कर्म जाना न ही राम जाना।
न पूजा करी औ' नहीं की भलाई।
अरे ऐश में जिन्दगानी गँवाई।
3
किसी डूबते को सहारा दिलाया?
किसी गाय को क्या निवाला खिलाया?
कभी मुफ्त शिक्षा किसी को दिलाई?
कभी जिन्दगी में करी क्या भलाई?
4
कभी सोच यात्री जरा साँस ले के।
वहाँ जायगा कौन सा पास ले के।
अभी भी नहीं देर ज्यादा हुई है।
लगी टेर तो दूर बाधा हुई है।
5
चला जायगा खोल मुट्ठी जहाँ से।
नहीं जायगी पोल पट्टी यहाँ से।
यहाँ जो कमाया यहीं छूटना है।
किया पुण्य है जो नहीं छूटना है।
6
करे क्यूँ गुमाँ तू गुलिस्ताँ सजा के।
उड़ानें भरे आसमाँ को लजा के।
कहानी यहीं खत्म होनी नहीं है।
रुहानी पतंगें उड़ानी यहीं हैं।
7
🎈🎈🎈🎈🎈🎈
मिला भोर से आज ऐसा इशारा।
लिखो आज कोई नया छंद
याराँ।
जरूरी नहीं ये कि भाए सभी को।
कहो बात ऐसी मिलाए सभी को।
8
किसी को तराने फसाने रिझाएँ।
कहीँ आँधियाँ दीपकों को बुझाएँ।
कहीं पे चिरागों तले आँधियाँ हैं ।
कहीं राज रानी बनी बाँदियाँ हैं।
9
दिलों में  खुशी ये तराने जगाएँ।
यही जिन्दगी से गमों को भगाएँ।
सदा जो फसाने सुनें औ' सुनाएँ ।
उन्हें क्यूँ  किसी के बहाने सताएँ
10
मणी जी सुनाएँ नए ही तराने।
नहीं रास आएँ पुराने घराने।
पुराने घरों की पुरानी दिवारें।
यहाँ खेलती जिन्दगी से जुआँ रे।
11
बुझे जो दिया वो बडी तेज लौ दे।
धुआँ आँख को आँसुओं से भिगो दे।
दिलों में बसें ये जवानी बुढापा।
जवाँ ने कभी क्या बुढापे को भाँपा।
12
हँसाती नहीं है कभी रेलगाडी।
रुलाती नहीं है कभी बैल गाडी।
हँसाती रुलाती हमें जिन्दगी है।
खुदा से मिलाती हमें बन्दगी है।
13
कभी भी किसी का भरोसा न तोड़ो।
किसी के भरोसे नहीं आप दौड़ो।
भरोसा दिलासा दिलाते सभी हैं।
कहाँ मुश्किलों में निभाते सभी हैं।
'ललित'
14
कुछ तो है बुढापे में

😀😀😀😀😀😀
बुढापा सदा मुश्किलों से बचाता।
युवा कौम की राह आसाँ बनाता।
कई कंटकों को पथों से हटाए।
नए दौर की खामियों को घटाए।

ललित
🙏🌺🙏

संक्षिप्त विधान

           विधान🌻चौपाई

"चौपाई" यह एक सम मात्रिक छंद है जिसमें चार चरण अर्थात दो पंक्तियाँ होती हैं और प्रत्येक चरण में 16 - 16  मात्राएँ होती हैं।

🌷 चौपाई के अंत में दो गुरू वर्ण अथवा दो लघु वर्ण व एक गुरु वर्ण या एक गुरु तथा दो लघु वर्ण होते हैं...लेकिन ध्यान रहे कि प्रत्येक चरण के अंत में "जगण (121) और तगण (221) नहीं आएगा ।

🍁 सार रूप में चौपाई के अंत में दो गुरु वर्ण 2+2  का मात्रा भार होना चाहिए जिससे लय बेहतर होती है।

               कुकुभ छंद

👉🏻 यह कुल 30 मात्राओं वाला एक मात्रिक छंद है जिसमें 16,14 मात्राओं पर यति होती है।

👉🏻 इस छंद के अंत में दो गुरुवर्ण होना अनिवार्य है अंत में दो लघु वर्णों को गुरु वर्ण नहीं माना जा सकता।

👉🏻 इस छंद की दो पंक्तियों में समतुकांत होता है। चार में नहीं।
कुकुभ/ककुभ छंद में 2/4 दोनों ही समतुकांत लिए जा सकते हैं लेकिन 2 समतुकांत से ही यह छंद सुंदर लगता है ।

       और दूसरी बात कि इस छंद के प्रत्येक चरण के अंत में 2 गुरु ही आने चाहिए...यानि 2 गुरु के पहले गुरु की अपेक्षा लघु आना ही श्रेयस्कर है....क्योंकि जैसे ताटंक छंद का अंत "मगण" यानि 3 गुरु (222) से होता है वैसे ही इस छंद का अंत भी "यगण" यानि 1 लघु 2 गुरु (122) से करना बेहतर होता है....

अतः अंत 2 गुरु से ही करें...यदि भाव प्रबल है तो इनके पहले लघु की जगह गुरु आ जाये तो भी चलेगा....पर जहाँ तक हो बचना है ।
🙏🏼🙏🏼👏🏼👏🏼😊👏🏼👏🏼🙏🏼🙏

3 ताटंक छंद साझा काव्य संग्रह

ताटंक छंद
1    कन्या भ्रूण हत्या
माँ तू नारी होकर इतनी,निष्ठुर क्यूँ बन जाती है।
कन्या की आहट सुन तेरी,चिन्ता क्यूँ बढ़ जाती है।
तेरी हिम्मत से ही माता,युग परिवर्तन आएगा।
तू आवाज उठाएगी तो,कोई दबा नहीं पाएगा।
माँ मै तुझ सी प्यारी सूरत,लेकर जग में आऊँगी।
किलकारी से घर भर दूँगी,पैंजनियाँ छनकाऊँगी।
तेरी गोद हरी कर दूँगी,साँस मुझे भी लेने दे।
जीवन रूपी रथ की ऐ माँ,रास मुझे भी लेने दे।
जब तू मुझको छूती है माँ,अपने मन की आँखों से।
मन करता है उड़ जाऊँ मैं,तेरे मन की पाँखों से।
माँ इतना ही वादा कर ले,मुझको जग में लाएगी।
किसी दुष्ट की बातों में आ,मुझको नहीं गिराएगी।

2   गर्भवती माँ की संवेदना

मेरे अन्दर पनप रही जो,एक कली अरमानों की।
नजर न लगने दूँगी उसको,इन बेदर्द सयानों की।
बेटी मेरी माँ बनने की,आस तभी पूरी होगी।
गोदी में खेलेगी जब तू,नहीं तनिक दूरी होगी।
लड़ जाऊँगी मैं दुनिया से,बेटी तुझे बचाने को।
सीखूँगी सब दाँव पेंच मैं,ताण्डव नाच नचाने को।
मेरे आँगन में किलकारी,भरने तू ही आएगी।
तेरी जान बचाने में ये,जान भले ही जाएगी।
'ललित'

2 ताटंक छंद साझा काव्य संग्रह

ताटंक छंद
1
श्याम तुम्हारे नयनों का ये,कजरा मुझे सताता है।
कान्हा की आँखों में रहता,कहकर ये इतराता है।
आज तुम्हीं सच कहना कान्हा,देखो झूँठ नहीं बोलो।
गर मैं हूँ कजरे से प्यारी,अपने नयन अभी धोलो।
राधा तू नयनों में बसती,दिल ये तेरा दीवाना।
तेरे सिवा किसी को मैंने,अपना कभी नहीं माना।
चाहे तो ये दिल मैं रख दूँ ,कदमों में तेरे राधा।
जिससे होता पूरा होता,प्यार नहीं होता आधा।
2
सबसे सुंदर है इस जग में,राधा-कान्हा की जोड़ी।
जिसने हृदय बसा ली ये छवि,प्रीत वही समझा थोड़ी।
चौंसठ कला निपुण हैं कान्हा,शक्ति स्वरूपा हैं राधा।
राधे-राधे नाम जपो तो,मिट जाएगी भव बाधा।
3
पत्थर पत्थर में भी देखो,कितना अन्तर होता है।
इक मूरत बन पूजा जाता,इक नाली में रोता है।
इक पर बैठी शोख हसीना,इक को लहरें ठोकें हैं।
इस किस्मत का खेल निराला,कर्मों ने सब झोंके हैं।
कर्म बने सत्कर्म तुम्हारा,हर पल ऐसे जी जाओ।
दीन दुखी की सेवा कर लो,उनके सब गम पी जाओ।
गौमाता की रक्षा कर लो,गौसेवा में मेवा है।
अपनी खातिर जिये मरे तो,कोई नाम न लेवा है।
'ललित'

18 भुजंग प्रयाति छंद साझा काव्य संग्रह

भुजंग प्रयाति छंद

1  कान्हा

कभी नेक सा दीखता है कन्हाई।कभी छोड़ता ही नहीं है कलाई।।
कभी गौ चराता बजा बाँसुरी वो।कभी ताड़ देता बला आसुरी वो।

नहाती हुयी गोपियों को सताता।करें रास कैसे उन्हें है बताता।।
कहे राधिका ढीठ बंसी बजा के।मिले गोपियों से लटों को सजा के।।

कहें गोपियाँ माँ दुलारा तुम्हारा।चुरा भागता है जिया ले हमारा।
कभी ये नचाता कभी ये लजाता।कभी बाँसुरी को सुरों से सजाता।

कभी फोड़ जाता हमारे घटों को।कभी नाच के वो लजा दे नटों को।
करे क्या यशोदा न माने कन्हैया।कभी डाँट दे औ' कभी ले बलैया।

2 कुछ सवाल

पढा है कभी आपने क्या दिलों को?दबाए हुए जो गमों की सिलों को।
पढा है कभी आपने क्या मुखों को?हँसी में छिपाए रखें जो दुखों को।

सुने हैं कभी बेतुके से बहाने?छुपा जो न पायें दुखों के दहाने।
मिले हैं कभी तात माता दुखी जो?सुतों को सदा दीखते हैं सुखी जो।

कभी आह वाली सुनी साँस है क्या?कभी डूबते की दिखी आस है क्या?
कभी आहटें मौत की हैं सुनी क्या?बुढापा कभी देखना है गुनी क्या?

किसी का सगा ये बुढापा नहीं है।जवानी दिखाती बुढापा यहीं है।
बुढापा भगा दे दवा वो चुनी क्या?जवाँ मौत दे दे दवा वो सुनी क्या?

'ललित'

17 मनहरण घनाक्षरी साझा काव्य संग्रह

मनहरण घनाक्षरी

1 बेटी जन्म

सूने सूने अँगना में,मेरी प्यारी बगिया में।
आई क नन्ही परी,घर महका दिया।

बोलती है तुतलाती,चलती है इठलाती।
फुदक-फुदक आती,पग लहका दिया।

कूकती है कोयल सी,झूमती है बदरा सी।
चुलबुली चिड़िया सी,मन चहका दिया।

चमके ज्यूँ चँदनियाँ,पहने है पैंजनियाँ।
पराई हूँ यही बोल,मन दहका दिया।

2  अजन्मी बेटी की अरज

बेटी

मैया मैं दुलारी तेरी,सुनले अरज मेरी।
जग में आने दे मुझे,कभी न सताऊँगी।

कलेजे का टुकड़ा हूँ,तेरा ही तो मुखड़ा हूँ
घर में आने दे मुझे,सदा मुसकाऊँगी।

तू जो मुख मोड़ लेगी,मेरा दम तोड़ देगी।
समझ न पाऊँ तुझे,कैसे भूल पाऊँगी।

तू भी जब आई होगी,तेरी कोई माई होगी।
जैसे पाल लिया तुझे,मैं भी पल जाऊँगी।

'ललित'

16. जलहरण घनाक्षरी साझा काव्य संग्रह

जलहरण घनाक्षरी
1
कान्हा से नजर मिली,राधा सुध भूल चली।
सरक गई चुनरी,पायलिया बेजान है।।

सखियाँ इशारे करें, मुख फेर फेर हँसे।
राधा छवि देख रही,साँवरिया नादान है।।

बाँसुरी बजाए कान्हा,गइयाँ है चरा रहा।
राधाजी को प्यारी लगे,बाँसुरिया की तान है।।

राधा जी की सखी संग,मोहन करे बतियाँ।
राधे रानी रूठ रही,कन्हैया बेईमान है।।

2
कन्या भ्रूण हत्या
अजन्मी की व्यथा

मुख मत मोड़ना माँ,मुझे मत मारना माँ।
तेरी परछाई हूँ मैं,कातिल ये जहान है।

चलती है पुरवाई,बरखा है बरसती
दुनिया है फुलवारी,गायब बागबान है

लहराता समंदर,ऊपर नीला अम्बर।
सतरंगी बहार है,ये प्यारा गुलिस्तान है।

घूमी लख चौरासी मैं,मानुष योनि पाने को।
मुझको भी देखने दे,दुनिया आलीशान है।

'ललित'

15 कुणडलिनी छंद साझा काव्य संग्रह

कुण्डलिनी छंद

1 झूठी तारीफ

गुब्बारे सा फूलता,देखा मानव ढोल।
सुनता जब तारीफ के,झूठे-सच्चे बोल।।
झूठे-सच्चे बोल,कहें जो दुनिया वाले।
लगते हैंं अनमोल,झूठ के वो सब प्याले।

गंगा

लहर लहर को चूमती,लहर लहर लहराय।
लहर लहर में झूमती,गंगा बहती जाय।
गंगा बहती जाय ,जगत को पावन करती।
खुद मैली हो जाय,पाप सब के है हरत़ी।

3 कटार ,छुरी

चाक हृदय होता रहा,झेल वार पर वार।
तेज छुरी से भी बुरी,उसकी नैन कटार।
उसकी नैन कटार,बला की है कजरारी।
हौले से बल खाय,चले ज्यूँ दिल पर आरी।

4    लट,जुल्फ

उलझी लट सुलझा रहा,बैठ जुल्फ की छाँव।
उलझ लटों में जब गया,भूल गया निज गाँव।
भूल गया निज गाँव,सखा भाई वो सारे।
मात-पिता-सुत-भ्रात,पत्नी सब ही बिसारे।

5  मीठी बोली

कड़वी बोली से जहाँ,शहद नहीं बिक पाय।
मीठी बोली से वहाँ,मिर्ची भी बिक जाय।।
मिर्ची भी बिक जाय,मधुर वाणी जो बोले।
सबका दिल हर्षाय,मीत वो हौले हौले।।

'ललित'

14 नजरें (कुकुभ छंद) भाग -2 साझा काव्य संग्रह

नज़रें  (भाग-2)  कुकुभ छंद
1
जैसा चश्मा नज़रों पर हो,दुनिया वैसी दिखती है।
काम-वासना के चश्मे से,कामी जैसी दिखती है।
नज़रों में इक प्रभु की छवि हो,चश्मा हो भगवद् गीता ।
भगवद् गीता जिसने पढ़ ली,समझो उसने जग जीता।
2
नज़र बचा कर चोरी करता,गोपी का माखन कान्हा।
नजर मिलाकर चोरी करता,हर गोपी का मन कान्हा।
कान्हा ऐसी किरपा करदो,नज़रों में तुम बस जाओ।
पलक बन्द हों फिर भी कान्हा,नज़र सदा बस तुम आओ।
3
कुछ शातिर ऐसे होते हैं,मन के भाव न दिखलाएं।
मन में उनके भाव छुपे जो,आँखों में न नज़र आयें।
नज़रों से सुर जैसे दिखते,अंतर्मन आसुर होता।
ऐसे मानव दानव ही हैं,जिनका अंतर्मन सोता।
4
मात पिता की नज़रों से जो,स्नेह सुतों को मिलता है।
उसी प्यार से जीवन बनता,बच्चों का दिल खिलता है।
मात पिता फिर प्यार ढूँढते,उन बच्चों की नज़रों में।
लेकिन प्यार कहाँ मिलता हैअंधे,गूंगे,बहरों में।
5     
शैल,समन्दर,वन उपवन सब,धरती,अम्बर अरु तारे।
सूरज,चँदा,धूप,चाँदनी,अगन,वायु, सरवर सारे।
नज़र किये हैं नारायण ने,साधन ये जीवन दाता।
कितना समझाया है इसको,पर मानव न समझ पाता।

'ललित'
       

          

13 नजरें(कुकुभ छंद) भाग -1 साझा काव्य संग्रह

कुकुभ छंद

नज़रें(भाग-1)
1
नज़रों से वो करे इशारे,नज़रों पर जो मरता है।
नज़रें उसकी कातिल जैसी,नज़रों से दिल हरता है।
नज़रों का सब खेला यारों,नज़रों में प्रिय बसता है।
प्रिय के दिल में स जाने का,नज़रों से ही रस्ता है।
2
अपनों के प्रति ममता-आदर,नज़रें ही तो दिखलाएं।
नज़रें अपनी कभी न बदलो,गुरुजन ये ही सिखलाएं।
नज़रों से सम्मान सभी का,कर सकते हैं हम भारी।
नज़रों से अपमान किया तो,दिल पर चलती बस आरी।
3
कुछ लोगों की घातक नज़रें,बच्चों को हैं लग जाती।
नज़र उतारे मैया उसकी,नींदों से जग जग जाती।
काला टीका लगा उसे वो,खूब बलैयाँ फिर लेती।
नज़र लगे न लाल को मेरे,लाख दुआएँ फिर देती।
4
मनख-मनख की नज़रों में भी,फर्क बड़ा ही दिखता है।
नज़र आसमाँ में रख कोई,पैर ज़मीं पर रखता है।
नज़र रखे धरती पर कोई,करनी ऊँची करता है।
पर उपकार करे वह जग में,झोली सबकी भरता है।
5
काम कभी ऐसा मत करना,नज़र झुकानी पड़ जाए।
एक बार नज़रों से गिरकर,कभी नहीं फिर उठ पाए।
नज़र रखो अपनी करनी पर,करनी ऐसी कर जाओ।
याद करे दुनिया वर्षों तक,नज़र मोड़ जब मर जाओ।

'ललित'                                 क्रमश:

12 गीतिका छंद साझा काव्य संग्रह

गीतिका छंद
1
हे प्रभो!अब ज्ञान ऐसा,दो यही विनती करें।
रात दिन हर साँस में प्रभु, नाम की गिनती करें।।
अति मनोहर आपकी छवि,नैन नित देखा करें।
आपका शुभ नाम लेकर,भाग्य का लेखा भरें।।
2      माँ को समर्पित

माँ तुम्हारा पाक दामन,याद मुझको आ रहा।
वो तुम्हारा स्नेह मन को,आज भी सहला रहा।
रोज पाता था जहाँ मैं,दो जहाँ का प्यार माँ।
खोजता मैं फिर रहा हूँ,फिर वही संसार माँ।
3      नकाब

वो नकाबों में छुपे कुछ,चाल ऐसी चल रहे।
बेनकाबों के दिलों पर,दाल जैसे दल रहे।
जब नकाबों को उठाकर,कनखियों से झाँकते।
ढेर हो जाते वहीं जो,खूब ऊँची हाँकते।
4
जान ले जो पीर मन की,मीत उसको मानिए।
थाम ले जो डोर मन की,प्रीत उसको जानिए।
कामना मन की मिटा दे,प्यास सारी दे बुझा।
ज्ञान उसको मानिए जो,राह सच्ची दे सुझा।

5 आँचल

आपका आँचल वदन से,आज ढलका जो जरा।
कह रहे धरती गगन ये,और ढलका दो जरा।
बस रही खुशबू नशीली,आपके आँचल तले।
चाँद तारों को लजाते,आप बल खाते चले।

'ललित'

छद श्री सम्मान